geet ratnavali
भूल किससे न हुई जीवन में!
गँवा दिया पर मैंने तो सर्वस्व एक ही क्षण में
घर सूना पाकर अकुलाये
प्रेमातुर स्वामी जब आये
क्यों मैंने वे वचन सुनायें
चुभे शूल-से मन में!
प्रिया-विरह-दुख भी दो दिन के
असह हुए थे मन को जिनके
ठुकरा गए वही जब, किनके
लिये सजूँ यह तन, मैं
लज्जा से वाणी जो फूटी
संजीवनी उन्हें हो बूटी
मैं तो गयी उसीसे लूटी
आग लगी यौवन में
भूल किससे न हुई जीवन में!
गँवा दिया पर मैंने तो सर्वस्व एक ही क्षण में