geet ratnavali
भाग्य को जीत सका है कोई!
जगजननी सीता भी तो, बेटी! जीवन भर रोयी
जिसने जग के भाग्य बनाये
बता, राम ने क्या सुख पाये!
जब रण जीत अवध में आये
प्राणप्रिया फिर खोयी
संभव है, वह सृष्टि-विधाता
हो इसमें कुछ मंगल पाता
जनकनंदिनी की दुख-गाथा
क्या स्मृति-पट से धोयी!
उस परित्यक्ता-सी जीवन में
यह विष पचा, सोच तो मन में-
गौतम-सा तो गया न वन में
छोड़ तुझे वह सोयी
भाग्य को जीत सका है कोई!
जगजननी सीता भी तो, बेटी! जीवन भर रोयी