geet ratnavali
गोद में सो जा, रला! मेरी,
कट जाने दे माँ के उर से लग दुख-निशा अँधेरी
लौट कभी तो वह गृहत्यागी
आयेगा करने बड़भागी!
रो न, रतन! पति हुआ विरागी
माँ तो मरी न तेरी
जीवन के दुख-शोक भुलाने
जी अब राम-भक्ति-व्रत ठाने
काटी जैसे जनकसुता ने
आयु दुखों से घेरी
रो न, मिलन-सुख यदि टिक पाया!
पति सँग होगी तेरी छाया
लगता, वह जगपति को भाया
जब वैसी मति फेरी!
गोद में सो जा, रत्ना! मेरी,
कट जाने दे माँ के उर से लग दुख-निशा अँधेरी