geet ratnavali
प्रेम पत्नी का यों गहराया,
पल भी दृग से ओझल हो वह, कविवर को न सुहाया
वह पतिप्राणा पति से छिपकर
एक बार पहुँची जब नैहर
लाँघ गये यमुना वे शव पर
मन इतना अकुलाया
आधी रात, द्वार पा मुद्रित
साँपिन बनीं कमंद मिलन-हित
आना पति का किंतु अकल्पित
नहीं प्रिया को भाया
जग कर लाजभरी वह बाला
डरी देख यह प्रेम निराला
फिर जो योग बना दुखवाला
कवि है लिखकर लाया
प्रेम पत्नी का यों गहराया,
पल भी दृग से ओझल हो वह, कविवर को न सुहाया