geet ratnavali

नाथ! यह अच्छी प्रीति दिखायी!
हाय! आपको बढ़ी हुई यमुना भी रोक न पायी!

रहे न दो दिन मन को थामे!
दौड़े आये मध्य निशा में!
ऐसा क्‍या देखा रला में

कुल-मरजाद डुबायी!

इस तन पर ऐसे ललचाये
पल भर भी रुक, सोच न पाये।
लोग कहेंगे क्‍या, यदि आये

चोरी-छिपे जँवाई!

जब चर्चा होगी यह घर-घर
‘कैसे पहुँचे आप यहाँ पर’
मैं न लाज से जाऊँगी मर!

क्या सोचेगा भाई!

नाथ! यह अच्छी प्रीति दिखायी!
हाय! आपको बढ़ी हुई यमुना भी रोक न पायी!