geet ratnavali

भली शिक्षा गुरु से थी पायी!
शव पर नदी पार की, साँपिन पड़ी कमंद दिखाई!

घोर रात, यमुना थी सम्मुख
क्यों न दो घड़ी और गये रुक!
आती मुझे हँसी, मिलनोत्सुक

क्या-क्या युक्ति रचायी!

वेद, शास्त्र सारे पढ़ डाले
पर मन क्‍यों सँभला न सँभाले!
आये यहाँ बने मतवाले

विद्या, बुद्धि, भुलायी

सोचा भी–‘जिस पर हूँ चंचल
है वह अस्थि-चर्म भर केवल
दीपशिखा-सी करती झलमल

दो दिन पा तरुणाई

भली शिक्षा गुरु से थी पायी!
शव पर नदी पार की, साँपिन पड़ी कमंद दिखाई!