geet ratnavali
रत्ना यों मुँह रह न छिपाये
बहुत दिनों पर भूले-भटके तेरे पति घर आये
यदपि मिल रहे वे जन-जन से
राम अवध लौटे ज्यों वन से
पर क्या फल इस शुभागमन से
यदि तू भेंट न पाये!
आज न हो पहली छवि सुन्दर
रोग-शोक से, सखि! तू जर्जर
पति के हित वैसी ही है पर
उठ निज मान भुलाये
किन्तु ठहर, ले धूल चरण की
हमें सुना लेने दे मन की
इतने दिन जो कसक सहन की
दबती अब न दबाये
रत्ना यों मुँह रह न छिपाए
बहुत दिनों पर भूले-भटके तेरे पति घर आये