geet ratnavali

कौन रला की दशा बताये!
मलिन-वदन, कृश-अंग, द्वार पर रहती कान लगाये

किससे कहे व्यथा जो झेली
रोती घर में बैठ अकेली
आकर कोई सखी-सहेली

कब तक जी बहलाये!

गाती गीत आपके चुन-चुन
कभी छेड़ती बैठ रामधुन
कभी आपकी कीर्ति-कथा सुन

हँसती अश्रु छिपाये

छिपी भवन में, नाम सुना जब
निर्णय प्रभु का जोह रहे सब
डर है करे न आत्मघात अब

साथ न यदि वह जाये

कौन रला की दशा बताये!
मल़िन-वदन, कृश-अंग, द्वार पर रहती कान लगाये