geet ratnavali

पधारें, तुलसीजी महराज!
बहुत दिनों पर दर्शन पाये, धन्य हुए हम आज

पर अब कौन करे पहुनाई?
माता, पिता न बहन न भाई
किसी तरह रत्ना बच पायी

घर-घर पीस अनाज

पाहुन कहें कि संत पुकारें?
जो भी हैं, सेवा स्वीकारें
अबकी पत्नी-सहित सिधारें

कहता यही समाज

मुक्त आप तो हुए, गुसांई
पर रत्ना ने क्‍या निधि पायी!
देखें, है किस भाँति बचायी

उसने घर की लाज

पधारें, तुलसीजी महराज!
बहुत दिनों पर दर्शन पाये, धन्य हुए हम आज