geet ratnavali

प्रीति यदि होती राम-चरण में,
जो मुझ पर है, स्वामी! तो भव-बाधा मिटती क्षण में

हैं रघुनाथ भक्त-भय-हारी
त्रिभुवन-पति वे नर-तन-धारी
पल में हटा मोह-तम भारी

लेते चरण-शरण में

भज उनको जो अग-जग-पालक
मानव-जीवन होता सार्थक
होते मुक्त, न टिकती अब तक

भोग-भावना मन में

राम-भक्ति-यश सुन स्वामी का
सजे सगर्व माँग में टीका
मैं भी तर जाती पत्नी का

धर्म निभा जीवन में

प्रीति यदि होती राम-चरण में,
जो मुझ पर है, स्वामी ! तो भव-बाधा मिटती क्षण में