geet vrindavan
सुना, व्रज में फिर श्याम पधारे
उठे नन्द प्रेमाकुल, उठ-उठ गिरे हर्ष के मारे
रो-रो लेने लगी बलैया
बिठा गोद में जसुमति मैया
दौड़ी पूँछ उठाये गैया
जुड़े नारि-नर सारे
वन-वन वंशी ध्वनि लहरायी
सखियों बीच घिरी शरमायी
राधा कुंज-भवन में आयी
उलझी लट सँवारे
सुनते ही, राधे! तुझको ही
लेने आया यह निर्मोही
बढ़ी किन्तु मिलने वह ज्यों ही
हरि द्वारिका सिधारे
सुना, व्रज में फिर श्याम पधारे
उठे नन्द प्रेमाकुल, उठ-उठ गिरे हर्ष के मारे