geet vrindavan

युगल छवि देखे ही बनती है
उधर अधर झुकते मुरली पर, इधर भौंह तनती है

राधा की तो प्रीत निराली
‘छाया क्यों यमुना ने पा ली’
माला भी पहनें वनमाली

तुरत रार ठनती है

पीताम्बर भी उसे न भाये
नभ में श्याम घटा क्यों छाये
मोर मुकुट चरणों में आये

तब जाकर मनती है

युगल छवि देखे ही बनती है
उधर अधर झुकते मुरली पर, इधर भौंह तनती है