geet vrindavan
‘कहीं ये सपना टूट न जाये!
नाथ! आपकी यह मोहक छवि फिर न मुझे भरमाये!
‘मिले भले ही पहले जैसे
पर मन को प्रतीति हो कैसे!
कितनी बार आप हैं ऐसे
मुझको छलते आये
‘क्या न रही अब कोई बाधा
कैसे याद आ गयी राधा!
हाय! ढल चुका जब वय आधा
तब फिर दर्शन पाये!
दुःख अपना क्या कहूँ, मुरारी!
क्षण-वियोग था जिसको भारी
वही आपकी राधा प्यारी
रो-रो दिवस बिताये
‘कहीं ये सपना टूट न जाये!
नाथ! आपकी यह मोहक छवि फिर न मुझे भरमाये!