geet vrindavan
राधे! कैसे भूली जायें
‘वृन्दावन के कुंजवनों की वे मोहक लीलायें !
जब तू मान किये कुछ ऐंठी
रूठ कदम्ब तले थी बैठी
मुरली-ध्वनि कानों में पैठी
दौड़ी उठा भुजायें!
घबरा मेरे क्षणिक विरह में
जब तू उतरी कालियदह में
संगी जहाँ खड़े थे सहमे
छोड़ सभी आशायें!
प्रिये! याद कर वे दिन सुन्दर
प्राण-विहाग प्रतिपल हैं क़तर
पर पिंजरे में वंदी हैं पर
कैसे तुझ तक आयें ‘
राधे! कैसे भूली जायें
‘वृन्दावन के कुंजवनों की वे मोहक लीलायें !