geet vrindavan

‘नहीं वृन्दावन दूर कहीं था
क्यों न चले आये मनमोहन! यदि मन सदा वहीं था!’

‘मन यदि मेरी सुधि कर लेता
धरती- गगन एक कर देता
कभी आपको, कंस-विजेता

कुछ भी कठिन नहीं था

‘अश्व आपके रथ के पल में
जाते उड़ तारा-मंडल में
वृन्दावन तो बस करतल में

पलकों तले यहीं था

‘नहीं वृन्दावन दूर कहीं था
क्यों न चले आये मनमोहन! यदि मन सदा वहीं था!’