geet vrindavan

हाय! अब तो आशा भी खोयी
टूटी क्षीण डोर जिसमें सपनों की लड़ी पिरोयी

साथ चले हरि जब ऊधो के
आशा प्राण रही थी रोके
बुझी आज, मैंने रो-धो के

लौ जो सदा सँजोयी

पल भर को अवगुंठन सरका
विरह ले लिया जीवन भर का
मौन हो गया सुर अंतर का

तान सदा को सोयी

कभी श्याम के मन को भाई
माना, भाग्य बड़ा मैं लायी
पर क्या मुझ-सी गयी सताई

कभी विश्व में कोई!

 

हाय! अब तो आशा भी खोयी
टूटी क्षीण डोर जिसमें सपनों की लड़ी पिरोयी