ghazal ganga aur uski lahren
साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं
ख़ूब परदा है यह ! जवाब नहीं
कैसे फिर से शुरू करें इसको !
ज़िंदगी है, कोई किताब नहीं
क्यों दिये पाँव उसके कूचे में
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं
आपने की इनायतें तो बहुत
ग़म भी इतने दिये, हिसाब नहीं
मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख़्वाब नहीं
मेरे शेरों में ज़िंदगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं