ghazal ganga aur uski lahren

जो न आये लौटके फिर कभी, मुझे उससे मिलने की आस है
जो सदा को छोड़ गयी मुझे, उसी हमक़दम की तलाश है

उसे ‘हाँ’ कहूँ तो है सब कहीं, जो ‘नहीं’ कहूँ तो कहीं नहीं
वही मुझसे दूर ही दूर है, मेरे पास से भी जो पास है

कभी दिन जो लौट न आयेंगे, मेरे दिल से निकल न पायेंगे
जो न मिट सके ये वो दर्द है, जो न बुझ सके ये वो प्यास है

जो गयी भी है मुझे छोड़कर, छिपी होगी वह किसी मोड़ पर
उसे ढूँढ़ ही लूँगा मैं दौड़कर, क्यों अभी से, दिल ! तू हताश है

कभी पहले भी था ये भरम हुआ कि मुझे है उसने भुला दिया
मेरे कान में आ रही है सदा, ‘ये अदा वही मेरी ख़ास है’

कोई मुझको ऐसी दुआ न दे, कोई मुझको ऐसी सज़ा न दे
ये गुलाब कैसे खिला रहे, जो बिछुड़के उससे उदास है !