ghazal ganga aur uski lahren
तू यहाँ मिले कि वहाँ मिले, तुझे हाँ कहूँ कि मैं ना कहूँ !
उसी रंग़ में हो जहाँ मिले, ये बता कि मैं तुझे क्या कहूँ
कहीं कुछ नहीं तू अगर नहीं, तुझे देखे बस वो नज़र नहीं
तू छिपा है होके भी हर कहीं, तेरे घर का कैसे पता कहूँ !
तू अँधेरा है, तू ही रोशनी, तू ही मौत है, तू ही ज़िंदगी
मेरे ‘मैं’ में तू, तेरे ‘तू’ में मैं, तुझे ख़ुद से कैसे जुदा कहूँ !
तू क़दम-क़दम मेरे साथ है, मेरे हाथ में तेरा हाथ है
मेरी लौ तो आबेहयात है, ये दिया जला कि बुझा कहूँ
कभी दी जो तुलसी-कबीर को, वही आब दे तू गुलाबको
कि नज़ीर हो जो ग़ज़ल कहूँ, कि क़बूल हो जो दुआ कहूँ