ghazal ganga aur uski lahren
तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं
मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं
कभी तो पहुँचेगी तेरे दिल तक हवा में उड़ती हुई ये तानें
हम अपनी दीवानगी का आलम, छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं
बिके तो राहों में ज़िंदगी की, न भूल पाये हैं पर तुझे हम
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का मातम, छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को
तो हम भी तेरे ही दिल का सरगम, छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं
भले ही दामन छुड़ा रही अब फिराके मुँह बेवफ़ा जवानी
हसीन रंगों का हम वो मौसम, छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं
कहाँ है काग़ज़ में रंगों-बू वह क़लम की जादूगरी तुम्हारी !
गुलाब ! तुमने कहा था हरदम-‘छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं’