guliver ki chauthi yatra

पंछी उड़-उड़ भी जायेंगे
पर ये कुछ ऐसे हैं चिर-दिन जो इस वन में मँडरायेंगे

हों भी मलिन काग कुछ इनमें
कुछ उलूक देखें मत दिन में
पर हैं राजहंस भी जिनमें

सहृदय मेरी छवि पायेंगे

जो मेरे सुर दुहरायेगी
कभी कोकिला भी आयेगी
जब-जब श्याम घटा छायेगी

मोर-पपीहा भी गायेंगे

मैंने अमृत-बीज जो बोये
यद्यपि आज धरा में सोये
छवि से मोहेंगे जग को ये

जब प्रसून बनकर लहरायेंगे

पंछी उड़-उड़ भी जायेंगे
पर ये कुछ ऐसे हैं चिर-दिन जो इस वन में मँडरायेंगे