guliver ki chauthi yatra

गीत गाकर अब किसे रिझाऊँ
जब न रहे पीनेवाले, क्यों गागर भर-भर लाऊँ!

बीत चुका जो सुख-दुख भोगा
उसे सुनाकर ही क्या होगा!
क्यों निज गत जीवन का चोगा

जग को खोल दिखाऊँ

बहुत दिवस मित्रों सँग खेला
अब तो आ पहुँची वह वेला
घर में ही चुप बैठ अकेला

मन-ही-मन कुछ गाऊँ

जीवन के इस शेष चरण में
जो अजान बैठा है मन में
क्यों न उसीको निज गायन मैं

सुना-सुना सुख पाऊँ!

गीत गाकर अब किसे रिझाऊँ
जब न रहे पीनेवाले, क्यों गागर भर-भर लाऊँ!