guliver ki chauthi yatra

छोड़ उसपर चिंताएं सारी
मन रे! क्या अब तक उसने तेरी बिगड़ी न सुधारी!

यदि उसपर विश्वास अटल है
क्यों चित् में यह चिंतानल है
सोचा भी यह किसका बल है

साँस न चलते हारी

माल यहाँ जो तूने पाया
क्या न उसी की थी सब माया
क्या ले जायेगा, क्या लाया

तू तो एक भिखारी

दुर्मुख, कुमुख, विमुख कुछ भी हो
प्रभु की करुणा मिली सभी को
कैसे वह न उसे पाए जो

शरणागत–व्रत-धारी!

छोड़ उसपर चिंताएं सारी
मन रे! क्या अब तक उसने तेरी बिगड़ी न सुधारी!