hansa to moti chuge

१.
एक से एक है तस्वीर इन आँखों में बसी
जब जिसे चाहते, सीने से लगा लेते हैं
२.
है न दुनिया में कहीं कोई पराया हमको
जो भी मिलता है उसे अपना बना लेते हैं
३.
एक दिन बाग़ से ख़ुद ही चले जायेंगे गुलाब
आज खिलते है अगर आप का क्या लेते हैं !

४.
कुछ बात है कि आपको आया है आज प्यार
देखा नहीं था ज्वार यों मोती के आब में
५.
लेते न मुँह जो फेर हमारी तरफ से आप
कुछ ख़ूबियाँ भी देखते ख़ानाख़राब में
६.
हमने ग़ज़ल का और भी गौरव बढ़ा दिया
रंगत नयी तरह की जो भर दी गुलाब में

७.
प्यार ही प्यार है भरा सब ओर
चेतना को निरावरण कर लो
८.
मन्त्र तो बस है ढाई अक्षर का
जिस पे चाहो वशीकरण कर लो
९.
पाँव चितवन के पड़ रहे तिरछे
थोड़ा सीधा तो बाँकपन कर लो
१०.
हमने माना कि खिल रहे हो, गुलाब !
सिर पे काँटों को भी वहन कर लो

११.
एक अनजान बिसुधपन में, जो हुआ सो ठीक
सोच किस-किसका हो जीवन में, जो हुआ सो ठीक
१२.
प्यार के एक मधुर क्षण में, जो हुआ सो ठीक
दोष होता नहीं यौवन में, जो हुआ सो ठीक
१३.
प्यार की राह में, माना कि मिट गये हैं गुलाब
गंध तो रह गयी उपवन में, जो हुआ सो ठीक

१४.
प्राण में गुनगुना रहा है कोई
फिर मुझे याद आ रहा है कोई
१५.
गीत को पंख लग गये जैसे
प्रेरणा बनके छा रहा है कोई
१६.
आज होंठों पे खिल रहे हैं गुलाब
मेरी ग़ज़लों को गा रहा है कोई

१७.
उनकी अलकें सँवारते हमने
काट दी ज़िंदगी अभाव के साथ
१८.
हमसे मिलिए तो आईने की तरह
प्यार टिकता नहीं दुराव के साथ
१९.
प्यार काँटों में ढूँढ़ते हैं गुलाब
कहाँ जायेंगे इस स्वभाव के साथ !

२०.
चुप तो किसी भी बात पर रहते नहीं है हम
ऐसा ही कुछ है पर जिसे कहते नहीं हैं हम
२१.
छूटें हैं जबसे आपकी पलकों की छाँह से
पल भर कहीं भी चैन से रहते नहीं हैं हम
२२.
एक शोख़ की नज़र ने खिलाये हैं ये गुलाब
यों ही हवा की तान पर बहते नहीं हैं हम

२३.
हम अपनी उदासी का असर देख रहे हैं
ख़ुद आये हैं चलकर वे इधर, देख रहे हैं
२४.
हम भी लगी जो आग उधर देख रहे हैं
यों तो न देखना था मगर देख रहे हैं
२५.
भाते न थे गुलाब उन्हें फूटी आँखों भी
मौसम का कुछ हुआ है असर, देख रहे हैं
२६.
बड़ी हसीन है सावन की रात, चुप भी रहो
कि ऐसे में भला जाने की बात ! चुप भी रहो
२७.
हरेक बात में कहते हो, कोई बात नहीं
घड़ी-घड़ी में वही एक बात, चुप भी रहो
२८.
छूके होंठों को ये आँसू भी बन रहे हैं गुलाब
वसंत बन गयी सावन की रात, चुप भी रहो
२९.
दिल के लुट जाने का ग़म कुछ भी नहीं !
आप ही सब कुछ हैं, हम कुछ भी नहीं !
३०.
मुस्कुरा उठती थीं हमको देखकर
आज उन भौंहों पे ख़म कुछ भी नहीं !
३१.
जा रहे मुँह फेरकर भौंरे, गुलाब !
आपकी ख़ुशबू में दम कुछ भी नहीं !
३२.
नहीं एक दिल की लगी छूटती है
भले ही भरी ज़िंदगी छूटती है
३३.
वे घबराके यों मेरी बाँहों में आये
पहाड़ों से जैसे नदी छूटती है
३४.
गुलाब ! आपका दिल पिरोना था जिसमें
वही एक, उनसे लड़ी छूटती है
३५.
जो रोते हैं ऐसी ही बातों में आप !
कहाँ मुँह छिपायेंगे रातों में आप !
३६.
हमें अपने ही हाल पर छोड़ दें
चले जायँ अब अपनी घातों में आप !
३७.
चुभाये हैं किसने ये काँटे, गुलाब !
खड़े हैं शहीदों की पाँतों में आप
३८.
भले ही दिल न मिलें, आँख चार होती रही
छुरी की धार कलेजे के पार होती रही
३९.
सुना है, आपने हमको किया था याद कभी
कसक-सी दिल में कहीं बार-बार होती रही
४०.
कभी गुलाब को देखा न उस तरह से खिला
हज़ार बाग़ में रस की फुहार होती रही
४१.
अँधेरी रात के पर्दे में झिलमिलाया किये
वे कौन थे, मेरे सपनों में आया-जाया किये !
४२.
बहुत था प्यार भी इतना कि पास बैठे रहे
हमारी बात को सुन-सुनके मुस्कुराया किये
४३.
नज़र से दूर भी जाकर है उनके पास सदा
गुलाब प्यार की ग़ज़लों में छिपके आया किये
४४.
रात भर रोये हैं कैसे आपकी यादों में हम
पूछ भी लें आँसुओं के टूटते तारों से आज
४५.
जान देने का हमारे दिल में भी है हौसला
चाहते हैं खेलना कुछ हम भी अंगारों से आज
४६.
तोड़ ले जाये कोई चुपके से डाली से गुलाब
आ चुके हैं तंग हम, काँटों की दीवारों से, आज
४७.
बहुत ही गहरे में मिलता है प्यार का मोती
हम अगर डूबते जाते तो कोई दूर न था
४८.
नहीं था खेल ये माना कि चाँद को छूना
अगर वे साथ निभाते तो कोई दूर न था
४९.
गुलाब ! सब यहाँ लगते थे दूर-दूर, मगर
चले जो मौज में गाते तो कोई दूर न था
५०.
कुछ उन्हें मेरा ध्यान हो भी तो
आये जो मन में ठान, हो भी तो
५१.
कुछ तो चुप्पी में भी कह जाता हूँ
उनकी आखों में कान हो भी तो
५२.
मेरी उम्मीद बचपना छोड़े
उनकी चाहत जवान हो भी तो
५३.
रंग तो है नया, ‘गुलाब’, मगर
लोग क्यों लेंगे मान, हो भी तो
५४.
कोई हमें सताये, सताता ही जाये तो
हम क्या करें जो मौत भी आकर न आये तो !
५५.
झूठा है प्यार, उनमें जो रंगत नहीं आयी
कोई हमारी आँखों से आँखें मिलाये तो
५६.
देखें, ग़ज़ल में रंग जमाता यहाँ कौन
कोई ज़रा गुलाब की ख़ुशबू उड़ाये तो
५७.
किसीकी शबनमी आँखों में झिलमिलाये हुए
एक अरसा हो गया फूलों की चोट खाये हुए
५८.
किया है प्यार बिना देखे भले ही उनसे
हम उस गली में न जायेंगे बिन बुलाये हुए
५९.
सिवा गुलाब के रंगत है किसकी लाल यहाँ !
बहुत हैं देखे जलाये हुए, सताये हुए
६०.
कभी बेसुधी में रुके नहीं, कभी भीड़ देखके डर गये
तेरा प्यार दिल में लिये भी हम, तेरे सामने से गुज़र गये
६१.
तू भले ही रात न था कहीं, जो वहम भी था तो बुरा नहीं
कि कभी हमारे क़रीब ही, तेरे पाँव आके ठहर गये
६२.
वे भले ही हँसके भी मिल रहे, न भरे वे प्यार के दिल, रहे
जो कभी थे होंठ पे खिल रहें वे गुलाब आज किधर गये
६३.
दिल की तड़प नीलाम हुई है
अब ये कहानी आम हुई है
६४.
आईना ख़ुद ही टूट गया था
मुफ्त नज़र बदनाम हुई है
६५.
प्यार वहाँ तक जा पहुँचा है
अक्ल जहाँ नाकाम हुई है
६६.
अब तो गुलाब उन आँखों में ही
तुमको सुबह से शाम हुई है
६७.
बहुत हमने चाहा कि दिल भूल जाये
मगर तुम भुलाने में भी याद आये
६८.
किसी मोड़ पर ज़िंदगी आ गयी थी
बढ़ा कारवाँ और हम रुक न पाये
६९.
तुम्हारी ही यादों की लौ जल रही थी
दिवाली के जब भी दिये जगमगाये
७०.
कभी अपने हाथों सँवारा था तुमने
गुलाब आज तक वैसे खिल ही न पाये
७१.
रात किस तरह यहाँ हमने बितायी होगी
बात यह आपके जी में भी तो आयी होगी
७२.
कोई बिजली कभी उस दिल में भी तड़पी होगी
कोई बरसात उन आँखों में भी छायी होगी
७३.
हम कहाँ और कहाँ आपसे मिलने का ख़याल !
किसी दुश्मन ने ये बेपर की उड़ायी होगी
७४.
रंग चेहरे का तेरे अब भी ये कहता है, गुलाब!
रात भर आँख सितारों से लड़ायी होगी
७५.
दिल्लगी और ही है, दिल की लगी और ही है
देखना और है, दर्शन की घड़ी और ही है
७६.
हमने माना कि हरेक रंग में मादक है रूप
रूप चितवन से जो झलका है कभी, और ही है
७७.
प्यार में और ही आँखों में महकते हैं गुलाब
चाँदनी रात में फूलों की हँसी और ही हैं
७८.
कभी सिर झुकाके चले गये, कभी मुँह फिराके चले गये
मेरा साथ कोई न दे सका सभी आये, आके चले गये
७९.
नहीं एक ऐसे तुम्हीं यहाँ जिसे प्यार मिल न सका कभी
कई लोग पहले भी आये थे, यही चोट खाके चले गये
८०.
वही पँखुरियाँ, वही बाँकपन, वही रंग-रूप की शोखियाँ
वो गुलाब और ही था, मगर, जिसे तुम खिलाके चले गये
८१.
बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये
देखिये, बात क्या बने, कुछ तो बनाके कह गये
८२.
आँखों ने उनकी कल हमें जाने पिला दिया था क्या !
कह न सके थे जो कभी, मस्ती में आके कह गये
८३.
काँटोंभरे गुलाब को, कोई बड़ा बताये क्यों !
माना कि बात वह भी कुछ ख़ुशबू उड़ाके कह गये
८४.
तेरी तरह बोली नहीं यह भी प्यार जताकर देख लिया
हमने तेरी तस्वीर को भी सीने से लगाकर देख लिया
८५.
और तो चाहे कुछ न हुआ हो, बाग़ में आने-जाने से
फूल समझकर उसने हमें भी आँख उठाकर देख लिया
८६.
वह जो कुँवारी शाम को उस दिन आपको बेहद भाये थे
वैसे गुलाब न फिर खिल पाये, सबने खिलाकर देख लिया
८७.
किसीके रूप का उन्माद कैसे भूले कोई !
पिघलती आग-सी सीने के आर-पार गयी
८८.
हृदय की पीर को ग़ज़लों में भर दिया मैंने
जिया है प्यार, जहाँ ज़िंदगी थी हार गयी
८९.
भरी सभा में सभी से नज़र चुराती हुई
कोई गुलाब की पँखुरी से मुझको मार गयी
९०.
कोई भले ही बढ़के गले से लगा न हो
मुमकिन नहीं कि उसको हमारा पता न हो
९१.
दिल का कभी हमारे तड़पना तो देखिए
जिस वक्त इसके पास कोई दूसरा न हो
९२.
पढ़ते हैं ख़त को हाथ में ले-लेके बारबार
शायद लिखा हो, आपने, शायद लिखा न हो
९३.
काँटों से यों न जाइए आँचल छुड़ाके आप
रुकिए, कि एक गुलाब भी उनमें खिला न हो
९४.
कहो प्यार से, छिपके सपनों में आये
अभी रूप को नींद आयी हुई है
९५.
हुई थी जिसे बोलने की मनाही
वो बात आज होठों पे आयी हुई है
९६.
खिलेंगे गुलाब अब तो आँखों में उनकी
सुना थोड़ी-थोड़ी ललाई हुई है
९७.
कभी वे मेरी, कभी अपनी तरफ देखते हैं
कभी तो तीर है दिल में, कभी कमान में है
९८.
बिना कहे भी तो आँखों ने कह दिया सब कुछ
सदा से प्यार की गाथा इसी ज़ुबान में है
९९.
अभी गुलाब की ख़ुशबू भी दिल को भाती नहीं
अभी तो कूक ही कोयल की, उनके कान में है
१००.
ये किसकी याद ने रातों उन्हें बेसुध बनाया है !
तड़प कर रह गयीं शीशे में ये अँगड़ाइयाँ किसकी
१०१.
लिये जीने की मजबूरी, खड़े हैं तीर पर हम-तुम
गले मिलकर चलीं लहरों में ये परछाइयाँ किसकी !
१०२.
कोई जैसे मुझे अब दूर से आवाज देता है
बुलाती हैं ‘गुलाब’ आँखों की वे अमराइयाँ किसकी
१०३.
अँधेरा था दिल में, अँधेरा था घर में
कोई रूप की चाँदनी लेके आया
१०४.
कहाँ से ये प्यार आया आँखों के अंदर !
न तुमने बुलाया, न हमने बुलाया
१०५.
गुलाब ! आज होने को सब कुछ वही है
मगर उठ गया है बहारों का साया
१०६.
ख़ुशबू न वह मिटेगी जो दिल में है बस गयी
जाकर कहीं भी प्यार की दुनिया बसाइए
१०७.
पलकों की ओट में कोई दिल भी है बेकरार
मुँह पर भले ही, बेरुख़ी हमसे दिखाइए
१०८.
कुछ मैं भी अपने आप को धीरज सिखा रहा
कुछ आप भी तो ख़ुद को तड़पना सिखाइए
१०९.
मुस्कान नहीं होंठों पर, आँखें भरी-भरी
सौ बार आइए, मगर ऐसे न आइए
११०.
उड़िए सुगंध बनके हवाओं में अब, गुलाब !
निकले हैं बाग़ से तो ग़ज़ल में समाइए
१११.
हटा भी लो पर्दा ज़रा सामने से
तुम्हें देख लें भर नज़र चलते-चलते
११२.
कुछ ऐसी ही थी बेबसी, माफ कर दो
हुई चूक कोई अगर चलते-चलते
११३.
गुलाब ! उसकी तुमने झलक भी न देखी
सुबह से हुई दोपहर चलते-चलते
११४.
तेरी तिरछी अदाओं पर जिन्हें मरना नहीं आता
उन्हें इस ज़िंदगी से प्यार भी करना नहीं आता
११५.
हमारी बेकली का मोल क्या हो उनकी आँखों में !
हमें तो आँसुओं में रंग भी भरना नहीं आता
११६.
जिन्हें भाते नहीं हैं बाग़ में काँटे, गुलाब ! उसको
कभी फूलों से सच्चा प्यार भी करना नहीं आता
११७.
किसीकी तड़प बेबसी कुछ न पूछो
भुला भी चुका है, भुला भी न पाया
११८.
जहाँ से हुई थीं अलग अपनी राहें
वहीं से हुईं एक दोनों की छाया
११९.
गुलाब ! एक दुनिया में घायल नहीं तुम !
नहीं किसको काँटों ने खिलना सिखाया !
१२०.
कभी हमसे खुलो जाने के पहले
मिलें आँखें तो शरमाने के पहले
१२१.
ज़रा आँसू तो थम जायें कि उनको
नज़र भर देख लें जाने के पहले
१२२.
जो घायल ख़ुद हो, औरों को रुलाये
शमा जलती है परवाने के पहले
१२३.
गुलाब ऐसे भी क्या चुप हो गये तुम
खिलो कुछ रात घिर आने के पहले
१२४.
कहिये कि कुछ तो काट लें दो दिन खुशी से हम
घबरा गये हैं आपकी इस बेरुख़ी से हम
१२५.
आये भी लोग आपसे मिलकर चले गये
देखा किये हैं दूर खड़े अजनबी-से हम
१२६.
रंगत किसीकी शोख़ निगाहों की है गुलाब
कह तो रहे हैं बात बड़ी सादगी से हम
१२७.
ज़िंदगी फिर कोई पाते तो और क्या करते !
आपसे दिल न लगाते तो और क्या करते !
१२८.
उनकी नज़रों से छिपाकर उन्हींसे मिलना था
हम ग़ज़ल बनके न आते तो और क्या करते !
१२९.
पंखड़ी दिल की कोई चूमने आया था ‘गुलाब’
आप नज़रें न झुकाते तो और क्या करते !
१३०.
हाथ में उनके ही नाड़ी है, देखिए क्या हो !
जिनके छूने से ही धड़कन मेरी बढ़ जाती है
१३१.
कोई मिल जाता बहाना गले लगाने का
यों तो ख़ुशबू तेरी हर साँस में लहराती है
१३२.
लाख खिलते हों गुलाब आपकी आँखों में, मगर
अब निगाहों में वो ख़ुशबू नहीं मिल पाती है
१३३.
हमारी ज़िंदगी ग़म के सिवा कुछ और नहीं
किसीके जुल्मोसितम के सिवा कुछ और नहीं
१३४.
समझ लें प्यार भी हम उस नज़र की शोखी को
मगर, ये अपने भरम के सिवा कुछ और नहीं
१३५.
समझता है जिसे ख़ुशबू, गुलाब ! तू अपनी
वो एक हसीन वहम के सिवा कुछ और नहीं
१३६.
लगा न होंठ से प्याला तो एक बार कभी
नज़र से हमने, मगर, पी ही ली उधार कभी
१३७.
हम उनके प्यार को समझें तो किस तरह समझें !
कभी नज़र में, कभी दिल में, दिल के पार कभी
१३८.
हमें तो चैन से दुनिया ने बैठने न दिया
हुआ गुलाब का काँटों से ही श्रृंगार कभी
१३९.
वे मिल तो लेते हैं आँखों-आँखों, नहीं भी दिल में जो कुछ कहीं है
शराब प्याले में हो, न हो, पर, नशा तो पीने में कम नहीं है १४०.
कहें जो ‘हाँ’ तो, नहीं है हाँ भी, नहीं कहें तो, ‘नहीं’ नहीं है
भले ही आँखों से हैं वे ओझल, झनक तो पायल की हर कहीं है
१४१.
हरेक सुबह आके पोंछता है, गुलाब ! कोई तुम्हारे आँसू
भले ही पाँवों का धूल पर कुछ निशान उसका नहीं कहीं है
१४२.
आयेंगी आँखों में क्या-क्या सूरतें !
दिल मचलता ही रहेगा रात भर
१४३.
एक ही पल तो हमारे प्यार का
वह भी टलता ही रहेगा रात भर
१४४.
कोयलें गायेंगी डालों पर, गुलाब
हाथ मलता ही रहेगा रात भर
१४५.
गये तो छोड़के दुनिया की आँधियों में हमें
कभी तो धूल ही आँचल से पोंछ दी होती !
१४६.
हमारे मन की उमंगों से खेलनेवाले !
हमारे प्यार की तड़पन भी देख ली होती !
१४७.
कभी गुलाब से मिलते बहार में जो आप
तो आज उनकी कहानी ही दूसरी होती
१४८.
चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में
बेगानापन भी कुछ है मगर उस निगाह में
१४९.
नश्तर चुभा के दिल के वे होते गये क़रीब
कहते रहे हम ‘और’ ‘और’ ‘आह’ ‘आह’ में
१५०.
आते न छोड़कर कभी हम जिसको उम्र भर
मंज़िल कोई ऐसी भी एक आयी थी राह में
१५१.
दम भर भी बाग़ में न रहे चैन से गुलाब
काँटे बिछे थे प्यार के आँचल की छाँह में
१५२.
तेरे वादों पे अगर एतबार आजाये
यों पलटकर न कोई बारबार आ जाये
१५३.
कुछ तो छलके तेरे प्याले में भरी है जो शराब
कुछ तो इस दर्दभरे दिल को करार आ जाये
१५४.
हमने हर मोड़ पे आँखों को बिछा रक्खा है
जाने, किस से ओर से सावन की फुहार आ जाये
१५५.
हम न मानेंगें कभी दिल में भी उनके हैं गुलाब
रंग आँखों में भले ही हज़ार आ जाये
१५६.
तू जिसके लिए बेचैन है यों, वह दर्द को तेरे जान तो ले
सीने पे न रक्खे हाथ, मगर, सीने की तड़प पहिचान तो ले
१५७.
होंठों पे न आये नाम तेरा, वह मुड़के तुझे देखे भी नहीं
तू भी है उसीका दीवाना, इस बात को दिल में जान तो ले
१५८.
या जीतके उसको अपना बना, या हारके बन जा तू उसका
हर हाल में तेरी जीत ही है, यह प्यार की बाजी ठान तो
१५९.
माना कि, गुलाब ! उन आँखों में रंगों का तेरे कुछ मोल नहीं
राहोंमें बिखर जा प्यार की तू, कुछ दिल का कहा भी मान तो ले
१६०.
कहने से बेवफ़ा तो बुरा मानते हो तुम
अब तुमको बेवफ़ा न कहें और क्या कहें !
१६१.
ख़ुद बेहिसाब, हमसे हरेक बात का हिसाब
तुमको अगर ख़ुदा न कहें, और क्या कहें !
१६२.
कहते हैं वे कि बाग़ में पतझड़ है अब गुलाब
हम तुमको अलविदा न कहें और क्या कहें !
१६३.
पीने की देर है न पिलाने की देर है
प्याला हमारे हाथ में आने की देर है
१६४.
हैं सैकड़ों सवाल, हज़ारों शिकायतें
होली पे उनको सामने पाने की देर है
१६५.
मंज़िल हरेक क़दम पे है इस दिल की राह में
बेगानगी का पर्दा हटाने की देर है
१६६.
देखेंगे सर को गोद में हम उनकी रात भर
बेहोश होके होश में आने की देर है
१६७.
दम भर में बदल जायगी रंगत तेरी, गुलाब !
उनके ज़रा निगाह उठाने की देर है
१६८.
सर झुका लेते हैं अब कुछ सोच कर
नाम सुनकर, जो तड़प जाया किये
१६९.
वे भी तो होंगे किसीके प्यार में
बेकली को दिल की, समझाया किये
१७०.
गीत मेरे उनके होंठों पर गुलाब
सादगी में भी ग़ज़ब ढाया किये
१७१.
भूलता ही नहीं कहना तेरा नम आँखों से
‘अब तो रुक जाइए, बरसात हुई जाती है’
१७२.
उनके आगे नहीं मुँह खोल भी पाते हों गुलाब
आँखों-आँखों में ही कुछ बात हुई जाती है
१७३.
हरेक सवाल पे कहते हो कि यह दिल क्या है
तुम्हीं बताओ मेरे प्यार की मंज़िल क्या है
१७४.
यों तो आसान नहीं प्यार की धड़कन सुनना
तार दिल के जो मिले हों तो ये मुश्किल क्या है !
१७५
रौंद डाली हैं पँखुरियाँ तेरी पाँवों से, गुलाब !
उसने देखा भी न झुककर कि मुक़ाबिल क्या है
१७६.
साज़ क्यों बज नहीं पाता है, कोई बात भी हो !
आज क्यों जी भरा आता है, कोई बात भी हो !
१७७.
रात है, चाँद है, तारे हैं, नदी है, तुम हो
प्यार क्यों आँख चुराता है, कोई बात भी हो !
१७८.
बाग़ में यों तो चटकते हैं हज़ारों ही गुलाब
एक क्यों खिल नहीं पाता है, कोई बात भी हो
१७९.
लगा कि अब तेरी बाँहों में कोई और भी है
हमीं हों दिल में, निगाहों में कोई और भी है
१८०.
ये कौन रात तड़पता रहा है काँटों पर !
निशान फूल की राहों में कोई और भी है
१८१.
पता नहीं कि उधर बेबसी में क्या गुजरी
शरीक दिल के गुनाहों में कोई और भी है
१८२.
खबर किसे है, हवाओं के मन में क्या है, ‘गुलाब’ !
छिपा बहार की छाँहों में कोई और भी है
१८३.
चाह अब भी हो उन्हें मेरी, ज़रूरी तो नहीं
उम्र भर याद हो बचपन की, ज़रूरी तो नहीं
१८४.
प्यार करने का उन्हें हक तो सभीका है, मगर
प्यार बदले में करे वे भी, ज़रूरी तो नहीं
१८५.
हर अदा उनकी क़यामत बनी है मेरे लिए
जानता भी हो इसे कोई, ज़रूरी तो नहीं
१८६.
कहा गुलाब से मिलने को तो हँसकर बोले
‘आख़िरी रात हो यह उसकी, ज़रूरी तो नहीं’
१८७.
ये हसीन बेकली क्यों सीने में भर गयी है !
मेरे दिल के पास आकर वो नज़र ठहर गयी है
१८८.
वे लटें थीं रात किसकी, मेरे बाजुओं पे बिखरी
मेरे हर ख़याल में एक ख़ुशबू-सी भर गयी है
१८९.
नहीं अब, गुलाब ! तुझमें, पहले-सी शोखियाँ हों
तेरी तड़पनों से कुछ तो दुनिया सँवर गयी है
१९०.
चलते-चलते कटी ज़िंदगी
फासले हाथ भर के रहे
१९१.
कौन पत्तों में देखे, गुलाब !
लाख तुम बन-सँवरके रहे
१९२.
तुझे देखे पर्दा उठाके जो, किसी दूसरे की मजाल क्या !
ये तो आईने का कमाल है कि हज़ार रंग बदल सके
१९३.
मेरी ज़िंदगी है बुझी-बुझी, मेरे दिल का साज़ उदास है
कभी इसको ऐसी खनक तो दे, तेरे घुँघरुओं पे मचल सके
१९४.
तेरे प्यार में है पहुँच गया मेरा दिल अब ऐसे मुक़ाम पर
कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके
१९५.
जो खिले थे प्यार के रंग सौ, कभी पँखुरियों में गुलाब की
उन्हें यों हवा ने उड़ा दिया की पता भी आज न चल सके
१९६.
प्यार की हम तो इशारों से बात करते हैं
फूल जिस तरह बहारों से बात करते हैं
१९७.
हम जिसे अपना समझ लें, वो कोई और ही है
यों तो करने को हज़ारों से बात करते हैं
१९८.
दो घड़ी आपकी नज़रों पे चढ़ गये थे गुलाब
रात भर चाँद-सितारों से बात करते हैं
१९९.
कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात
हमारे प्यार की ख़ुशबू से भर गयी है रात
२००.
हथेलियों पे हमारी है चाँद पूनम का
किसीकी शोख़ लटों में उतर गयी है रात
२०१.
ये शोखियाँ, ये अदाएँ कहाँ थीं दिन के वक्त !
कुछ और आप पर जादू-सा कर गयी है रात
२०२.
मिला न कोई महक दिल की, तौलनेवाला
गुलाब ! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात
२०३.
तुझसे लड़ जाय नज़र, हमने ये कब चाहा था
प्यार भी हो ये अगर, हमने ये कब चाहा था
२०४.
दोस्ती में गले मिलते थे हम कभी, लेकिन
हो तेरी गोद में सर, हमने ये कब चाहा था
२०५.
यों तो मंज़िल पे पहुँचने की खुशी है, ऐ दोस्त !
खत्म हो जाय सफ़र, हमने ये कब चाहा था !
२०६.
तुझसे मिलने को लिया भेस था दीवाने का
उठके आया है शहर, हमने ये कब चाहा था !
२०७.
जब कहा उनसे, ‘मिटे आपकी चाहत में गुलाब’
हँसके बोले कि, ‘मगर, हमने ये कब चाहा था’
२०८.
अब कहाँ मिलने की सूरत रह गयी !
दिल में बस, यादों की रंगत रह गयी
२०९.
बन गयीं पत्थर की सब शहज़ादियाँ
आँख भर लाने की आदत रह गयी
२१०.
किस तरह उनको मना पायें गुलाब
जिनको ख़ुशबू से शिकायत रह गयी
२११.
दिलों में प्यार की पीड़ा नयी जगाते चलो
कुछ और रूप की दुनिया को जगमगाते चलो
२१२.
कुछ इस बहाने ही आयी तो रौशनी घर में
गले लगाके बिजलियों को, मुस्कुराते चलो
२१३.
कभी तो उनको लुभा लेंगी तड़पनें इसकी
ये दिल का साज़ जहाँ तक बजे, बजाते चलो
२१४.
गुलाब ! बाग़ में तुमसे ही है बहार आयी
सुगंध प्यार की, निकलो जिधर, लुटाते चलो
२१५.
हाल सब का यही प्यार में
कुछ हमारा-तुम्हारा नहीं
२१६.
पास रखते हैं हरदम गुलाब
कोई काँटों से प्यारा नहीं
२१७.
हमारे सामने आओ कि हम भी देख सकें
नज़र नज़र से मिलाओ कि हम भी देख सकें
२१८.
हँसी तो होंठों पे लाओ कि हम भी देख सकें
कुछ ऐसे प्यार दिखाओ कि हम भी देख सकें
२१९.
ये कैसा खेल है आँखों की ओट होता रहे !
कभी तो पर्दा हटाओ कि हम भी देख सकें
२२०.
सुना है, तुमने उगाये हैं पुतलियों में गुलाब
हमें भी पास बुलाओ कि हम भी देख सकें
२२१.
हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय
ज़रा-सा रुख़ तो मिलाओ कि ज़िंदगी बन जाय
२२२.
तुम्हारा प्यार हमारा है, बस हमारा है
कहीं न जान की दुश्मन ये दोस्ती बन जाय
२२३.
कभी किसीसे जो लग जाय तो छूटे ही नहीं
नज़र का खेल है यह तो कभी-कभी बन जाय
२२४.
गुलाब इतने हैं दुनिया की चोट खाये हुए
कलम हवा में छिड़क दें तो शायरी बन जाय
२२५.
उसीको सजते रहे हैं हम अपनी ग़ज़लों में
था जिसने साथ, बहाना बनाके छोड़ दिया
२२६.
फिर उस तरह से कभी चाँदनी सँवर न सकी
किसीने दो घड़ी मन में बसाके छोड़ दिया
२२७.
झलकता और ही उन पर है आज प्यार का रंग
किसीने दूध में केसर मिलाके छोड़ दिया
२२८.
भले ही प्यार ने हमको बना दिया था गुलाब
उन्होंने आँख का काँटा बनाके छोड़ दिया
२२९.
लिया था नाम ही चलने का, भर आयीं आँखें
अब उनसे लौटकर आने की बात कौन करे !
२३०.
गुलाब ! आपकी चुप्पी ही रंग लायेगी
सुगंध कहके बताने की बात कौन करे !
२३१.
मिलने की हर खुशी में बिछुड़ने का ग़म हुआ
एहसान उनका खूब हुआ, फिर भी कम हुआ
२३२.
नज़रें मिलीं तो मिलके झुकीं, झुकके मुड़ गयीं
यह बेबसी कि आँख का कोना न नम हुआ
२३३.
कुछ तो चढ़ा था पहले से हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ
२३४.
कुछ तो नज़र का उनकी भी, इसमें क़सूर था
देखा जिसे भी, प्यार का उसको भरम हुआ
२३५.
आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से आज
लगता है अब गुलाब का खिलना ही कम हुआ
२३६.
फिर उन्हें हम पुकार बैठे हैं
फिर कोई दाँव हार बैठे हैं
२३७.
दिल कहाँ और कहाँ तेरी दुनिया !
शीशा पत्थर पे मार बैठे हैं
२३८.
होंगे मोती कहीं उन आँखों में
हंस जमना के पार बैठे हैं
२३९.
कुछ तो सुंदर था रूप पहले से
और कुछ हम सँवार बैठे हैं
२४०.
कैसे दिल चीरकर दिखायें गुलाब !
प्यार पर पहरेदार बैठे हैं
२४१.
दिल की तड़पन देखिये, दुनिया की ठोकर देखिए
दो घड़ी तो रहके इन आँखों के अंदर देखिए
२४२.
हैं बिछी पलकें हमारी हर अदा पर आपकी
आप भी इस ओर थोड़ा मुस्कुराकर देखिए
२४३.
फिर न लौटेंगे कभी इस बाग़ से जाकर गुलाब
देखना हो उनको जितना, आज जी भर देखिए
२४४.
आज तो शीशे को पत्थर पे बिखर जाने दे
दिल को रो लेंगे, ये दुनिया तो सँवर जाने दे
२४५.
ज़िंदगी कैसे कटी तेरे बिना, कुछ मत पूछ
यों तो कहने को बहुत कुछ है, मगर जाने दे
२४६.
तेरे छूते ही तड़प उठता है साँसों का सितार
अपनी धड़कन मेरे दिल में भी उतर जाने दे
२४७.
जी तो भरता नहीं इन आँखों की ख़ुशबू से, मगर
ज़िंदगी का बड़ा लंबा है सफ़र, जाने दे
२४८.
सुबह आयेगा कोई पोंछने आँसू भी, गुलाब !
रात जिस हाल में जाती है, गुज़र जाने दे
२४९.
है समझने की नहीं और न समझाने की
आँखों-आँखों वो अदा तेरे लिपट जाने की
२५०.
कौन होगा तेरी गलियों में हम-सा ख़ानाख़राब
उम्र भर याद न आयी जिसे घर जाने की
२५१.
और दो-चार घड़ी खेल उन आँखों में, गुलाब !
फिर मिलेगी न तुझे रात परीखाने की
२५२.
प्यार किस तरह उसको जतलायें !
दिल को हम चीरकर भी दिखलायें
२५३.
है कोई इंतज़ार में हरदम
हम लिपटने की ताब तो लायें
२५४.
बस कि पर्दे से लगके बैठे हैं
कभी दम भर तो सामने आयें
२५५.
वे भी बेचैन हों हमारे लिए
और हम इसको देख भी पायें
२५६.
अब तो बगिया से जा रहें हैं गुलाब
जिनको मिलना है, आके मिल जायें
२५७.
क्या छिपी है अब हमारे दिल की हालत आपसे !
कुछ तो ऐसा हो कि हो मिलने की सूरत आपसे
२५८.
ख़ाक के पुतलों में क्या है और इस दिल के सिवा !
दिल की रंगत ग़म से है, ग़म की है रंगत आपसे
२५९.
दो घड़ी हँस-बोल लेना भी ग़नीमत जानिए
ज़िंदगी देती है कब मिलने की मोहलत आपसे !
२६०.
वह ग़ज़ल के नुक्ते-नुक्ते से है दुनिया पर खुली
लाख हम इस दिल की बेताबी कहें मत आपसे
२६१.
कब भला इस बाग़ की हद से निकल पाये गुलाब
आप तक आये है चलकर, होके रुख़सत आपसे
२६२.
इसी राह से ज़िंदगी जा चुकी है
लकीरों पे दुनिया जो टूटे तो टूटे
२६३.
गुलाब ! आपके प्यार की बेल है यह
जँचे उनकी आँखों में बूटे, तो बूटे
२६४.
हमारे दिल का तड़पना ही रंग लाया है
नहीं तो क्या था भला आपकी कहानी में !
२६५.
गुलाब खिल नहीं पाते हैं जो बहार में भी
कमी तो कुछ है कहीं उनकी बाग़वानी में
२६६.
प्यार दिल में है अगर, प्यार से दो बात भी हो
यों न उमड़ा करें बादल, कभी बरसात भी हो
२६७.
उनसे पर्दा है, जिन्हें दिल की बात कहनी है
कुछ हो ऐसा कि यह पर्दा भी रहे, बात भी हो
२६८.
कौन रखता है यहाँ प्यार के वादों का हिसाब !
आप नाहक हैं परेशान, कोई बात भी हो !
२६९.
यों तो ख़ुशबू का खजाना है पँखुरियों में, गुलाब !
क्या पता, इनमें तेरे प्यार की सौग़ात भी हो !
२७०.
ठुमरी-सी भैरवी की, ख़ुमारी शराब की
दिल में है उनकी याद कि ख़ुशबू गुलाब की
२७१.
कहते हैं लोग,’आपके दिल में है हमसे प्यार’
हम भी तो देखते कभी तड़पें ज़नाब की
२७२.
हर एक नज़र के साथ महकते हैं सौ गुलाब
की बात जो भी आपने वह लाजवाब की
२७३.
हमसे वो चुराता नज़र, ऐसा तो नहीं था !
दुनिया की हवा का असर ऐसा तो नहीं था !
२७४.
कंधों से हमारे, तेरी बाँहों का लिपटना
मुश्किल भी हो, मुश्किल मगर ऐसा तो नहीं था
२७५.
पहले भी, कई बार निगाहें थीं मिल गयीं
हंगामा पर इस बात पर, ऐसा तो नहीं था
२७६.
वे कह गये, गुलाब से आँचल छुड़ाके आज
‘हम बँध गये हों उम्र भर. ऐसा तो नहीं था’
२७७.
न यों मुह फेरकर सो जा मेरी तकदीर के मालिक !
कहानी ज़िंदगी की, फिर से, दुहरायी नहीं जाती
२७८.
हमारा दिल तो कहता है, उन्हें भी प्यार है हमसे
तड़प उसकी भले ही हमको दिखलायी नहीं जाती
२७९.
नहीं जाती, गुलाब ! उन शोख़ रातों की महक दिल से
हमारे आईने से अब वो परछाईं नहीं जाती
२८०.
आपके दिल में हमारी भी चाह, है कि नहीं !
कहीं आगे भी सितारों के, राह है कि नहीं !
२८१.
यह तो किस मुँह से कहें ‘आप हमारे हो जायँ’
पर हमें अपना बनाने की चाह, है कि नहीं !
२८२.
आपका दर न सही, राह का पत्थर ही सही
हमको हर हाल में होना तबाह है कि नहीं !
२८३.
यह तो क़िस्मत न हमारी थी, मिले होते कभी
पर इधर आपकी तिरछी निगाह, है कि नहीं !
२८४.
झुकके आँखों में किसीकी ये पूछते हैं गुलाब
‘आपके दिल में पहुँचने की राह, है कि नहीं !’
२८५.
लाख सीने में छिपाया किये इस दिल को, हम
पर ये शीशा किसी पत्थर की चोट खा ही गया
२८६.
एक तेरे ही लिए बात नयी क्या है, गुलाब !
जो भी इस बाग़ से गुजरा है, तड़पता ही गया
२८७.
अब उन हसीन अदाओं का रंग छूट गया
हमारे प्यार का सपना ही जैसे टूट गया
२८८.
कभी तो फिर भी अकेले में मिल ही जाओगे
भले ही आज है मेले में साथ छूट गया
२८९.
गुलाब ! तुमने भी फेंकी तो थी हवा में कमंद
पहुँच भी पाए थे उन तक कि हाथ छूट गया
२९०.
यों नज़र से नज़र नहीं मिलती
दिल की धड़कन अगर नहीं मिलती
२९१.
उनके आँचल की मिल रही है हवा
बेसुधी बेअसर नहीं मिलती
२९२.
बाग़ से आये तो निकलके गुलाब
राह आगे की पर नहीं मिलती
२९३.
जान उन पर लुटाके बैठ गये
हम भी उस दर पे जाके बैठ गये
२९४.
क्या हुआ छू गयी जो लट उनकी !
हम ज़रा छाँव पाके बैठ गये
२९५.
लीजिए मूँद ली आँखें हमने
आप क्यों मुँह फिराके बैठ गये !
२९६.
जिनको भाती रही गुलाब की रूह
अब वे मेंहदी लगाके बैठ गये
२९७.
बातें तो हैं कहने की हज़ारों, कह भी रहे हैं, कह भी न पाते
काम की बातें फिर कर लेंगे, आज तो हों बेकाम की बातें
२९८.
मरना देखके डर जाना क्या ! जीने के नाम से घबराना क्या !
प्यार ने हाल किया कुछ ऐसा, ये हैं सुबह और शाम की बातें
२९९.
जिसने गुलाब में काँटे चुभाये, उसने बड़ा एहसान किया है
कौन, नहीं तो, प्यार में करता, मेरी तरह गुमनाम की बातें !
३००.
रात आया था लटें खोले कोई
फूल महका था रात रातरानी का
३०१.
रंग देखें गुलाब के भी आज
जिनको दावा है बाग़वानी का
३०२.
कोई मंज़िल नयी हरदम है नज़र के आगे
एक दीवार खड़ी ही रही सर के आगे
३०३.
देखिये गौर से जितना भी, हसीन है उतना
एक जादू का करिश्मा है नज़र के आगे
३०४.
कहें भी क्या जो वही पूछ रहे हैं हमसे
‘ये ग़म हैं क्या जो तेरा दिल जलाये जाते हैं’
३०५.
उन्हें सवाल भी अपना सुनाके क्या होगा !
जो हर सवाल पे बस मुस्कुराये जाते हैं
३०६.
गुलाब बाज़ न आते हैं उनसे मिलने से
भले ही राह में काँटे बिछाये जाते हैं !
३०७.
कोई रोने के सिवा काम भी है !
मेरी हर सुबह मेरी शाम भी है
३०८.
जिसमें हम-तुम भी छूटते पीछे
प्यार में ऐसा एक मुक़ाम भी है !
३०९.
खूब काँटों में खिल रहे हैं गुलाब
प्यार की है सज़ा, इनाम भी है
३१०.
जिन्हें देखकर था नशा चढ़ गया
वही कह रहे पीके आये हैं हम
३११.
मसलती है पाँवों से दुनिया, गुलाब
मगर अब हवाओं पे छाये हैं हम
३१२.
मेरी आँखों में जब तक नमी है
तेरी महफ़िल तभी तक जमी है
३१३.
आज उन सुर्ख़ होंठों की फड़कन
एक अहम बात पर आ थमी है
३१४.
प्यार तो कम नहीं है उधर भी
देखनेवाले ! तुझमें कमी है
३१५.
हर क़दम यह राह मुश्किल और है
सामने मंज़िल के मंज़िल और है
३१६.
प्यार की शोहरत हुई तो क्या हुआ !
प्यार में मरने का हासिल और है
३१७.
कौन जाये छोड़कर अब दर तेरा !
हमने यह माना कि मंज़िल और है
३१८.
तू कहाँ इन ऐशगाहों में, गुलाब !
तेरे दीवानों की महफ़िल और है
३१९.
नज़र उनसे छिपकर मिलायी गयी है
बचाते हुए चोट खायी गयी है
३२०.
गुलाब ! अब उसी डाल पर लौटना है
जहाँ से ये ख़ुशबू चुरायी गयी है
३२१.
डूबने का मजा, वे क्या जानें !
जो किनारों की सैर करते हैं !
३२२.
ये वो मौसम है जिसके आने पर
लोग क्या-क्या न कर गुज़रते हैं
३२३.
पूछा उसने कि, ‘यह गुलाब है कौन?’
हम तो इस पूछने पे मरते हैं
३२४.
उनको हर बात में एक बात नयी आयी नज़र
नाम जब आपका यारों की नज़र तक पहुँचा
३२५.
अक्ल को राह न मिल पायी ख़ुद अपने घर की
प्यार का अक्स सितारों की नज़र तक पहुँचा
३२६.
हो गया कैद भले ही तेरे काँटों में गुलाब
बनके ख़ुशबू तो हज़ारों की नज़र तक पहुँचा
३२७.
कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से
वे पास ही मिले हैं, मगर दिल की राह से
३२८.
देखेंगे हम भी अपने तड़पने का असर आज
पत्थर पिघल गये हैं, सुना, दिल की आह से
३२९.
कहने को तो, हमें भी किया याद आपने
अच्छा था भूलना ही मगर इस निबाह से
३३०.
काँटों में दिल हमारा तड़पता है ज्यों गुलाब
क्या दुश्मनी थी आपको इस बेगुनाह से !
३३१.
नहीं इस दर्द का उनको पता हो, हो नहीं सकता
कोई दिल की लगी से अनछुआ हो, हो नहीं सकता
३३२.
असर कुछ प्यार में है तो, लिपट जायेगा सीने से
मिटें हम और कोई देखता हो, हो नहीं सकता
३३३.
भले ही हम न हों जब प्यार की शहनाइयाँ गूँजें
तुम्हारे दिल में कोई दूसरा हो, हो नहीं सकता
३३४.
गुलाब ! ऐसे तो वे तेरी पँखुरियाँ नोचते कब थे !
नहीं कुछ प्यार भी इसमें छिपा हो, हो नहीं सकता
३३५.
हमसे किसीका प्यार छिपाया न जायगा
इतना हसीन बोझ उठाया न जायगा
३३६.
मेंहदी लगी हुई है उमंगों के पाँव में
सपने में भी तो आपसे आया न जायगा
३३७.
लहरा रहे हैं आपकी आँखों में अब गुलाब
काँटों से ज़िंदगी को बचाया न जायगा
३३८.
हुआ है प्यार भी, ऐसे ही कभी, साँझ ढले
कि जैसे चाँद निकल आये और पता न चले
३३९.
मिले न हमको, भले, उनके प्यार की ख़ुशबू
नज़र से मिल ही लिया करते हैं गले से गले
३४०.
गुलाब बाग़ में करते रहे हैं सबसे निबाह
चुभे जो पाँव में काँटे तो वे भी साथ चले
३४१.
वादों को उनके खूब समझते हैं हम, मगर
क्या कीजिए जो दिल को तड़पने की प्यास हो !
३४२.
भाती नहीं हो प्यार की ख़ुशबू जिसे, गुलाब !
शायद कभी उसे भी तुम्हारी तलाश हो
३४३.
सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहींसे हम
बाज़ आये उनके प्यार की ऐसी ‘नहीं’ से हम
३४४.
कहते हैं जिसको प्यार, ख़ुमारी थी नींद की
सपना चुराके लाये थे, कोई कहीं से हम
३४५.
इतने चुभे हैं प्यार में काँटे गुलाब को
उठती है हूक, जब भी झुकाते कहीं से हम
३४६.
कोई मुझसे आके पूछे तेरे प्यार की कसक को
कोई तीर ऐसा होता मेरे दिल के पार होता
३४७.
तेरा प्यार मिल भी जाये, तेरा रूप मिल न पाता
जो हज़ार बार मिलते, यही इंतज़ार होता
३४८.
नहीं उनको अब है भाती ये महक गुलाब की भी
वही धूल में पड़ा है जो गले का हार होता
३४९.
प्यार को हम न कोई नाम दिया चाहते हैं
बस उन्हें एक नज़र देख लिया चाहते हैं
३५०.
और तड़पायेंगी यादें हमें इन खुशियों की
आप क्यों हमपे यह एहसान किया चाहते हैं
३५१.
वह जो तुमको कभी हँसते हुए मिलते थे गुलाब
आज रो-रोके, सुना, जान दिया चाहते हैं
३५२.
न रोकते हैं निगाहों से यहाँ पीने से
मगर मना है लगा लेना उनको सीने से
३५३.
मिली है प्यार की ख़ुशबू तो हर तरफ से हमें
भले ही बीच में परदे पड़े हैं झीने-से
३५४. .
अभी से मोड़ न मुँह, बेरहम ! अभी तो नहीं
भरा है जी, तेरी अँगड़ाइयों में जीने से
३५५ .
भले ही प्यार में आँसू न पोंछता हो कोई
गुलाब और भी चमका है इस नगीने से
३५६ .
ग़म बहुत, दर्द बहुत, टीस बहुत, आह बहुत
फिर भी दिल को है उसी बेरहम की चाह बहुत
३५७ .
हाय ! उस दूध की धोयी नज़र का भोलापन
सैकड़ों खून भी करके है बेगुनाह बहुत
३५८ .
यों तो उस दिल में बसी आपकी सूरत ही, गुलाब !
है मगर, और भी फूलों से रस्मो-राह बहुत
३५९ .
हमसे यह बीच का पर्दा भी उठाया न गया
उनको बढ़कर कभी सीने से लगाया न गया
३६० .
इसपे मचले थे कि देखेंगे तड़पना दिल का
उनसे देखा न गया, हमसे दिखाया न गया
३६१ .
कुछ इस कदर थी नज़र रात हमारी बेताब
उनसे छिपते न बना, सामने आया न गया
३६२ .
दर्द वह दिल को मिला, उम्र की हद तक हमसे
चुप भी रहते न बना, कहके बताया न गया
३६३ .
यों तो खिलने को नये रोज ही खिलते हैं गुलाब
पर यह अंदाज़ किसी और में पाया न गया
३६४
जी से हटती ही नहीं याद किसीकी गुमनाम
जैसे बीमार के आँगन से बरसती हुई शाम
३६५
तू जो पर्दा न उठाये तो यह किसका है क़सूर !
हमने यह रात लिखा दी है तेरे प्यार के नाम
३६६.
हमने माना बड़ी नाज़ुक है कलम तेरी, गुलाब !
पंखड़ी भी कभी कर देती है तलवार का काम
३६७.
मिल गयी क्या तेरी आँखों में झलक प्यार की थी !
आख़िरी वक्त, तड़प और ही बीमार की थी
३६८.
यों चलायी थी छुरी उसने गले पर हँसकर
हमने समझा कि अदा यह भी कोई प्यार की थी
३६९.
उसको गुमनाम ही रहने दो, कोई नाम न दो
वह जो ख़ुशबू-सी निगाहों में इंतज़ार की थी
३७०.
भेद तेरा उसे कोयल न कह गयी हो, गुलाब !
आज बदली हुई चितवन भी कुछ बहार की थी
३७१.
बहकी हुई है चाल कोई देखता न हो
ऐसा हमारा हाल कोई देखता न हो
३७२.
हम चाहते हैं, प्यार तेरा, देख ले दुनिया
यह भी है पर ख़याल, कोई देखता न हो
३७३.
क्यों फूल रहा आप ही अपने में तू, गुलाब !
जब तेरा यह कमाल कोई देखता न हो !
३७४.
दिल लौटता रहा है टकराके हर नज़र से
पत्थर बने शहर में, हैं फिर गुलाब फूले
३७५.
बेकार लिख गये हैं ख़त में हम उनको इतना
लिखना था मुख़्तसर में ‘हैं फिर गुलाब फूले’
३७६.
रूप मोहताज है बंदों की नज़र का, लेकिन
बंदगी रूप की मोहताज नहीं होती है
३७७.
हम उन्हें अपना तड़पना भी दिखायें कैसे !
दिल जो टूटे भी तो आवाज नहीं होती है
३७८.
सर पे काँटे भी बड़े शौक से रखते हैं गुलाब
तख़्तपोशी तो बिना ताज नहीं होती है
३७९.
यों तो इस दिल के कदरदान बहुत कम हैं आज
फिर भी लगता है कि आँखें ये तेरी नम हैं आज
३८०.
चूक कुछ तो थी हुई राह की पहिचान में ही
दूर हम प्यार की मंज़िल से हर क़दम हैं आज
३८१.
उनसे मिलकर भी तड़पते हैं उनसे मिलने को
पास जितने भी ज़ियादा हैं, उतने कम हैं आज
३८२.
और ही उनकी निगाहों में खिल रहे हैं गुलाब
उनके होंठों पे छिड़े और ही सरगम हैं आज
३८३.
प्यार की राह में रोने से तो बाज़ आयें हम
पर ये मुमकिन नहीं, आँखे भी न भर लायें हम
३८४.
और होंगे, तेरी महफ़िल में तड़पनेवाले
तू निगाहें भी फिरा ले तो चले जायें हम
३८५.
हम उसीके हैं, उसीके हैं, उसीके हैं सदा
वह भी समझे हमें अपना, मगर आसान नहीं
३८६.
एक ही रात है, नींद एक है, बिस्तर है एक
एक आँखों का हो सपना, मगर आसान नहीं
३८७.
यों तो राही हैं सभी एक ही मंज़िल के, गुलाब
तेरा इस भीड़ में खपना, मगर आसान नहीं
३८८.
जिसे बेरुख़ी था समझा, वो नज़र थी बेबसी की
तेरी आँख भर ही आयी मुझे छोड़ने के पहले
३८९.
जो छलक रहा है प्याला तेरे हाथ से तो क्या है !
कभी मुँह से तो लगाले इसे फोड़ने के पहले
३९०.
तेरे हार में थे यों तो कई फूल रंगवाले
ये गुलाब पर कहाँ थे, मुझे जोड़ने के पहले
३९१.
पीने का नहीं हमपे नशा, और ही कुछ है
वह जो तेरी आँखों से ढला, और ही कुछ है
३९२.
यों तो हैं हर नज़र में क़यामत की शोखियाँ
दिल में उतर गयी जो अदा और ही कुछ है
३९३.
माना कि हम गले से गले मिल रहे हैं आज
यादों में तड़पने का मजा और ही कुछ है
३९४.
ऐसे तो बाग़ भर में है चर्चा गुलाब की
पर जो तेरी नज़रों में खिला और ही कुछ है
३९५.
तुम्हें प्यार करने को जी चाहता है
फिर एक आह भरने को जी चाहता है
३९६.
बड़े बेरहम हो, बड़े बेवफ़ा हो
करें क्या जो मरने को जी चाहता है !
३९७.
मना है, जिधर ये निगाहें उठाना
उधर पाँव धरने को जी चाहता है
३९८.
कहें क्या तुम्हें, ज़िंदगी देनेवाले !
कि जी से गुज़रने को जी चाहता है
३९९.
खिले हैं गुलाब आज होंठों पे उनके
कोई जुर्म करने को जी चाहता है
४००.
खिली गुलाब की दुनिया तो है सभी के लिए
मगर गुलाब है खिलता किसी-किसीके लिए
४०१.
ये हमने माना कि जीवन है एक अँधेरी रात
कभी तो वे भी चले आयें रौशनी के लिए
४०२.
जहाँ भी होती है चर्चा तेरी रंगीनी की
हमारा नाम भी लेते हैं सादगी के लिए
४०३.
यों तो निशान पाँव का मिलता है यहीं तक
मानेंगे हम न, साथ हमारा है यहीं तक
४०४.
ख़ुशबू है प्यार की भी छिपी चितवनों के पार
लेकिन हमारा आप पर दावा है यहीं तक
४०५.
क्या कीजिएगा जानकर दीवानगी का राज !
राही से मेलजोल भी अच्छा है, यहीं तक
४०६.
दिल में भी है बसी हुई रंगत गुलाब की
मुँह फेरनेवाले न समझना, है यहीं तक
४०७.
हुआ प्यार का यह असर मिलते-मिलते
कि झुकने लगी है नज़र मिलते-मिलते
४०८.
नहीं खेल है, उनकी आँखों को पढ़ना
कि मिलती है दिल की खबर मिलते-मिलते
४०९.
हटा रुख़ से पर्दा न बेगानेपन का
कोई रह गया उम्र भर मिलते-मिलते
४१०.
गुलाब ! आप कितनी भी ख़ुशबू छिपायें
नज़र कह गयी कुछ मगर मिलते-मिलते
४११.
तेरी आँखों से तेरे दिल का था कितना फ़ासिला !
पर यहाँ एक उम्र पूरी हो गयी चलते हुए
४१२.
तुझसे मिलने का किया वादा तो है उसने, गुलाब !
टल न जाये वह सदा को दिन-ब-दिन टलते हुए
४१३.
ये प्यार के वादे क्या सुनिए, यह दिल की कहानी क्या कहिए
कहना है हरेक तड़पन में जिसे, वह बात ज़ुबानी क्या कहिए
४१४.
दिल प्यार की आँच में तपता जब, मोती है चमकता आँखों में
इस बूँद को आँसू की भी कोई कहता है जो पानी, क्या कहिए !
४१५.
ऐसे तो ‘गुलाब’ उन रातों की हर बात लिखी है सीने पर
पर आख़िरी प्यार की घड़ियों में आँसू की रवानी, क्या कहिए !
४१६.
मुझे देखते रहे जो बड़ी बेरुख़ी से पहले
मेरे नाम पर हैं रोते वही अब, सभी से पहले
४१७.
मैं नहीं था फिर भी मुझको तेरा दिल पुकारता था
मेरा प्यार जी रहा था, मेरी ज़िंदगी से पहले
४१८.
कई बार यों तो आयीं तेरे बाग़ में बहारें
ये गुलाब पर कहाँ थे मेरी शायरी से पहले !
४१९.
हमारे वास्ते कहना है जो, खुशी से कहो
मगर जो औरों से कहते हो, वह हमींसे कहो
४२०.
गरज कि कुछ तो ख़मोशी का सिलसिला टूटे
नहीं जो प्यार से कहते हो, बेरुख़ी से कहो
४२१.
गुलाब ! हमने ये माना, बड़े रंगीन हो तुम
मगर जो बात भी कहनी है, सादगी से कहो
४२२.
दिल हमें देखके कुछ देर को धड़का होता
तुम किसी और के होते भी अगर, क्या होता !
४२३.
हम भी सीने में धड़कता हुआ कुछ रखते थे
दो घड़ी रुकके कभी हाल तो पूछा होता !
४२४.
दिल में कुछ और भी यादों की कसक बढ़ जाती
तुम जो मिलते भी तो आख़िर यही रोना होता
४२५.
जानते हम जो, ये पत्ते भी दग़ा देंगे, ‘गुलाब’!
भूलकर भी न क़दम बाग़ में रक्खा होता
४२६.
जब क़यामत में ही होगा फैसला हर बात का
तू ही बतला, हम तेरे वादों को लेकर क्या करें
४२७.
पूछनी थी जब, न पूछी बात, मुरझाये गुलाब
फूल अब बरसा करें उन पर कि पत्थर, क्या करे !
४२८.
लुभा रही है बहुत, उनके देखने की अदा
पर उसको क्यों कहें बादल कि जो बरस न सका !
४२९.
सभी के खून की रंगत तो लाल ही है, मगर
वो रंग और ही कुछ है कि जो गुलाब बना
४३०.
प्यार की दी है सज़ा हमको, मगर यह तो कहो
क्या नहीं तुम भी हमेशा थे गुनहगार के साथ !
४३१.
यों तो नज़रों से सदा दूर ही रहता है कोई
आके लगता है गले दिल की एक पुकार के साथ
४३२.
पंखड़ी का तेरी, यह रंग न टिकता हो, गुलाब !
पर ये ख़ुशबू न मिटेगी कभी बहार के साथ
४३३.
यों तो हमेशा मिलते रहे हम, दोनों तरफ थी एक-सी उलझन
उसने न रुख़ से पर्दा हटाया, हमने न छोड़ा हाथ से दामन
४३४.
उम्र की राह जो तय कर आये, आओ, उसीसे लौट चलें अब
देखो, यहीं तुम हमसे मिले थे, यह है जवानी, यह है लड़कपन ४३५.
रूप की हर चितवन में बसे हम, प्यार की हर धड़कन है हमारी
किसको गुलाब का रंग न भाया! किसमें नहीं काँटों की है कसकन!
४३६.
तेरी बेरुख़ी ने मुझको ये हसीन ग़म दिया है
मेरा दिल जलानेवाले ! तेरा लाख शुक्रिया है
४३७.
मेरी एक ज़िंदगी को नहीं कम है यह भरम भी
कि कभी नज़र से तूने मुझे अपना कह दिया है
४३८.
वो नज़र से जानेवाला मेरे दिल में आके बोला
‘सभी कुछ वही है, हमने ज़रा घर बदल लिया है’
४३९.
तेरे नाम की है ख़ूबी कि, गुलाब ! हर सुबह को
किसी बेरहम ने दिलमें तुझे याद तो किया है
४४०.
कभी प्यार से मुस्कुराओ तो क्या है !
हमें भी जो अपना बनाओ तो क्या है !
४४१.
वही लौ इधर भी, वही लौ उधर भी
दिये से दिये को जलाओ तो क्या है !
४४२.
हमारे-तुम्हारे सिवा, कौन है अब !
ये पर्दा घड़ी भर हटाओ तो क्या है !
४४३.
गुलाब एक दिन पास पहुँचेंगे ख़ुद ही
जो आओ तो क्या है ! न आओ तो क्या है !
४४४.
पँखुरियाँ गुलाब की नम न हों तो क्या करें !
कुछ उधर भी प्यार के ग़म न हों तो क्या करें !
४४५.
कैसे अजनबी बने, हमसे पूछते हैं, वे
‘अब भी तेरी तड़पनें कम न हों तो क्या करें !’
४४६.
हम इधर हैं बेकरार, है उधर भी इंतज़ार
पर नज़र के फ़ासिले कम न हों तो क्या करें !
४४७.
प्यार यह हमारे ही दिल का हो भरम नहीं !
धड़कनों में आपकी हम न हों तो क्या करें !
४४८.
जब कहा, ‘गुलाब को चलके देख लीजिए’
बोले, ‘आख़िरी है अब, दम न हों तो क्या करें ! ४४९.
उड़के ख़ुशबू तेरे जूड़े की तो आयी हर वक्त
लाख हमसे तेरी सूरत थी छिपायी जाती
४५०.
तुझसे मिलकर तो बढ़ी है ये जलन, तू ही बता
‘और किस तरह लगी दिल की बुझायी जाती’
४५१.
खून से अपने कलेजे के, रँगाते हैं गुलाब
पंखड़ी तब तेरे चरणों पे चढ़ायी जाती
४५२.
वैसे तो चाहने से यहाँ क्या नहीं होता !
बस आपकी नज़र का इशारा नहीं होता
४५३.
सोया किसीके रेशमी आँचल की छाँह में
बीमार है अच्छा कि जो अच्छा नहीं होता
४५४.
सुनता हूँ दिल में और भी एक दिल की धड़कनें
मैं होके अकेला भी, अकेला नहीं होता
४५५.
आकर कभी जो देख भी लेते गुलाब को
रंग उनका इस तरह कभी फीका नहीं होता
४५६.
उन्हें बेतकल्लुफ किया चाहता हूँ
ये क्या कर रहा हूँ ! ये क्या चाहता हूँ !
४५७.
कभी पूछ भी लो कि क्या चाहता हूँ
तुम्हें चाहने की सज़ा चाहता हूँ
४५८.
जरा अपने आँचल का साया तो कर लो
दिया हूँ, हवा से बुझा चाहता हूँ
४५९.
गुलाब आज यों बाग़ में कह रहा था
‘तुझे मैं भी, ऐ बेवफ़ा ! चाहता हूँ’
४६०
उम्र भर ख़ाक ही छाना किये वीराने की
ली नहीं उसने खबर भी कभी दीवाने की
४६१.
शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक
मेरी आदत थी बुरी, पीके बहक जाने की
४६२.
जिसने भेजा था घड़ी भर तुझे खिलने को, गुलाब !
फ़िक्र क्या ! जो वही आवाज दे घर आने की
४६३.
तुझसे इस दिल की मुलाक़ात अभी आधी है
चाँद ढलता हो, मगर रात अभी आधी है
४६४.
तेरा उठने का इशारा तो समझते हैं हम
पर तेरे प्यार की सौग़ात अभी आधी है
४६५.
यों तो कहती है अदा प्यार की सब कुछ हमसे
पर निगाहों में कोई बात अभी आधी है
४६६.
हम तो मानें, जो बरस जायँ वे आँखें भी, गुलाब !
तेरे आँसू की ये बरसात अभी आधी है
४६७.
यों तो उन नज़रों में है जो अनकहा, समझे हैं हम
फिर भी कुछ है इस समझने के सिवा, समझे हैं हम
४६८.
छोड़ दी सादी जगह ख़त में हमारे नाम पर
बेलिखे ही उसने जो कुछ लिख दिया, समझे हैं हम
४६९.
प्यार की मंज़िल तो है इस बेरुख़ी से दो क़दम
सैकड़ों कोसों का जिसको फ़ासिला समझे हैं हम
४७०.
देखकर तुझको, झुका ली है नज़र उसने, गुलाब !
हो चुका है खत्म पहला सिलसिला, समझे हैं हम
४७१.
कभी तो, उससे बहार आयेगी मरुथल में भी
मैंने की है जो यहाँ प्यार के रँग की बरसा
४७२.
हुस्न को और निखारा है, आँसुओं ने मेरे
भुला न पाओगे इस दिल के तड़पने की अदा
४७३.
आज जी चाहे जहाँ सज लो, खिल रहे हैं गुलाब
फिर नहीं बाग़ में आयेगा कोई फूल ऐसा
४७४.
उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता !
जहाँ पर ज़िंदगी है मैं वहीं होता तो क्या होता !
४७५.
हुआ है दिल तो घायल बेरुख़ी से ही उन आँखों की
जो थोड़ा प्यार भी उनमें कहीं होता तो क्या होता !
४७६.
गुलाब ! अच्छे हैं काँटे भी, जो सीने से लगाए हैं
सहारा यह भी जीने का नहीं होता तो क्या होता !
४७७.
अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है
४७८.
दुनिया की भीड़-भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं
गुम इसमें मेरे प्यार की मूरत भी हुई है
४७९.
काँटों में रखके पूछ रहे हो गुलाब से
‘कोई तुम्हारे जीने की सूरत भी हुई है’
४८०
दिया भी याद का इसमें जलाके रक्खा है
दिल एक प्यार का मंदिर बनाके रक्खा है
४८१.
कभी तो हँसके, कभी तिलमिलाके भी हमने
क़दम को उनके क़दम से मिलाके रक्खा है
४८२.
जहाँ किसीकी नज़र भी नहीं लगे उस पर
तुम्हारे प्यार को ऐसे छिपाके रक्खा है
४८३.
कहो ये उनसे, ‘तड़पते बहुत गुलाब हैं आज
उन्हें बहार ने काँटों पे लाके रक्खा है’
४८४.
यों तो गुजरे हैं इन आँखों से हसीन एक-से-एक
और ही था कोई दिल में जिसे उतार लिया
४८५.
यह तो क़िस्मत न हमारी थे मिले होते गुलाब
हमने काँटों से ही लेकिन ये घर सँवार लिया
४८६.
उन्हें बाँहों में बढ़कर थाम लेंगे
कभी दीवानेपन से काम लेंगे
४८७.
ग़ज़ल में दिल तड़पता है किसीका
उन्हें कह दो, कलेजा थाम लेंगे
४८८.
गुलाब ! इस बाग़ की रंगत थी तुमसे
वे किस मुँह से, मगर यह नाम लेंगे !
४८९.
प्यार औरों से नहीं, हमसे अदावत न सही
है तो शोखी ये निगाहों की, शरारत न सही
४९०.
लीजिए, हम वो मुकदमा ही उठा लेते हैं
अपनी क़िस्मत ही सही, आपकी आदत न सही
४९१.
दिल में जो आपकी तस्वीर उतर आयी है
रंग तो प्यार का उसमें है, हकीकत न सही
४९२.
उनके गमले में तो हर रोज ही खिलता है, गुलाब !
न हुई तेरी अगर बाग़ में इज्जत, न सही
४९३.
कितने दिये बुझाये होंगे
तब साजन घर आये होंगे
४९४.
हैरत है, जब तक न मिले थे
हम क्या करते आये होंगे !
४९५.
इतने लाल गुलाब कहाँ थे !
तुमसे नयन मिलाये होंगे
४९६.
फिर-फिर वही धुन लेकर यों किसने पुकारा है
लगता है, उन आँखों में, रुकने का इशारा है
४९७.
क्या प्यार को समझें हम ! क्या रूप को देखें हम !
एक जान हमारी है, एक जान से प्यारा है
४९८.
उलझा था कभी इसमें आँचल तो, गुलाब ! उनका
अब डाल का काँटा ही जीने का सहारा है
४९९.
धुन प्यार की जो समझें न उन्हें, यह दिल की कहानी क्या कहिये!
कहना है जो कान में फूलों के, पत्तों की जुबानी क्या कहिये !
५००.
आये तो यहाँ, इतना ही बहुत, अब आप खुशी से रुख़सत हों
इस दिल को तड़पते रहने की आदत है पुरानी, क्या कहिए !
५०१.
आने की खबर सुनकर जिसकी, धड़कन है बढ़ी जाती दिल की
है आज उसी बेदर्द को यह नाड़ी भी दिखानी, क्या कहिए !
५०२.
ऐसे तो गुलाब ! आया न कभी प्याला तुम तक उन हाथों से
जो बात, मगर कह जाती है चितवन बेगानी, क्या कहिए !
५०३.
हैं सभी ग़ज़लें तो ये उनको सुनाने के लिए
कुछ मगर हैं दिल-ही दिल में गुनगुनाने के लिए
५०४.
सामने नज़रों के आना उनसे बन पाता नहीं
बन गये थे सौ बहाने दिल में आने के लिए
५०५.
लो कसम, हमने अगर मुँह से लगायी हो शराब
यह बहाना था गले तुमको लगाने के लिए
५०६.
यों तो ग़ज़लों के बहाने उनसे मिल लेते हैं हम
पर बहाना चाहिए कुछ तो बहाने के लिए
५०७.
एक ही चितवन से उनकी हो गये मदहोश हम
एक चिनगारी बहुत थी घर जलाने के लिए
५०८.
ज़िंदगी की रात है यह एक ही तेरी, गुलाब !
और वह भी है महज आँसू बहाने के लिए
५०९.
उसने ठोकर से जो प्याले को भी तोड़ा होता
हमने आँखों से तो पीना नहीं छोड़ा होता
५१०.
थोड़ा पी लेते जो तलछट को ही छोड़ा होता
आपने हमसे कभी रुख़ भी तो जोड़ा होता !
५११.
डर न होता जो उसे डाल के काँटों का, गुलाब !
देखकर उसने तुझे, मुँह नहीं मोड़ा होता
५१२.
न छोड़ यों मुझे, ऐ मेरी ज़िंदगी ! बेसाज़
कभी तो मैं भी अदाओं का तेरी था हमराज़
५१३.
तमाम उम्र बड़ी कश्मकश में गुजरी है
कभी तो मुझको बतादे तू अपने प्यार का राज
५१४.
गुलाब ! बाग़ में क्या-क्या न गुल खिलाता है
हर सुबह, यह तेरे खिलने का एक नया अंदाज़ !
५१५.
किसीकी याद कसकती रहेगी दिल में सदा
ये चार दिन की भले ज़िंदगी रहे न रहे
५१६.
हमारे प्यार की यह ताजगी न कम होगी
किसीके रूप की जादूगरी रहे न रहे
५१७.
गुलाब ! आपकी ख़ुशबू तो उनके साथ रही
अब इसका सोच नहीं, पंखड़ी रहे न रहे
५१८.
देखा करेंगे राह हम उनकी तमाम उम्र
झूठे हों ये वादे, कभी ऐसा नहीं होगा
५१९.
जब तू न रहेगा तो तेरी याद रहेगी
कागज़ रहें सादे, कभी ऐसा नहीं होगा
५२०.
मौसम हज़ार रंग बदलता रहे गुलाब
वह तुझको भुला दे कभी ऐसा नहीं होगा
५२१.
भेंट उसने गुलाब की ले ली
जैसे प्याली शराब की ले ली
५२२.
प्यार दिल में किया है हमने, अगर
कौन दौलत ज़नाब की ले ली !
५२३.
आज पहले-सी वह बहार कहाँ !
किसने रंगत गुलाब की ले ली !
५२४.
एक बिजली-सी, घटाओं से निकलती देखी
प्यार की लौ तेरी आँखों में मचलती देखी
५२५.
होश इतना था किसे, उठके जो प्याला लेता !
हमने क़दमों पे तेरे, रात निकलती देखी
५२६.
नाज़ुकी इसकी उठाती नहीं शब्दों का बोझ
प्यार की बात इशारों में ही चलती देखी
५२७.
लाख तू उनकी निगाहों में समाया है, गुलाब !
पर न हमने तेरी तकदीर बदलती देखी
५२८.
कुछ तो है उसकी आँखों में प्यार
और कुछ है हमारा भरम
५२९.
जान ले ले, मगर शर्त है
तेरे कदमों पे निकले ये दम
५३०.
वे अदाएँ कहाँ अब, ‘गुलाब’ !
जिनपे मरने की खायी कसम !
५३१.
कभी पास आ रही है, कभी दूर जा रही है
ये नज़र है प्यार की जो मुझे आजमा रही है
५३२.
कभी बाग़ में खिलेंगे जो गुलाब भी हज़ारों
ये महक कहाँ मिलेगी जो ग़ज़ल में छा रही है
५३३.
चैन न आया दिल को घड़ी भर, हरदम वार पे वार हुए
आपने प्यार का खेल किया हो, हम तो बहुत बेज़ार हुए
५३४.
हम न रहे तो कौन भला ये शोख़ अदायें देखेगा !
बाग़ की सब रंगत है हमींसे, फूल भले ही हज़ार हुए
५३५.
एक हमींको क्यों दुनिया ने दीवाने का नाम दिया
जब कि हमारी हर धड़कन में आप भी हिस्सेदार हुए !
५३६.
अपनी पँखुरियों को छितराकर आज गुलाब ये कहता था
‘खूब जिन्हें खिलना हो खिलें अब, हम तो हवा पे सवार हुए’
५३७.
साथ हरदम भी, बेनकाब नहीं
खूब पर्दा है यह, जवाब नहीं
५३८.
आपने की इनायतें तो बहुत
ग़म भी इतने दिये, हिसाब नहीं
५३९.
क्यों दिये पाँव उसके कूचे में
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं !
५४०.
मेरे शेरों में ज़िंदगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं
५४१.
कौन कहता है, तुझे प्यार नहीं है हमसे
जब ये रह-रहके इशारे हैं नज़र के आगे !
५४२.
तू भले ही है छिपा रंगमहल में अपने
तेरे पापोश तो, प्यारे ! हैं नज़र के आगे
५४३.
कभी ख़ुशबू से ये दिल उनका भी छू लेंगे, गुलाब !
रंग तूने जो पसारे हैं नज़र के आगे
५४४.
छिपाये छिप नहीं सकती है बेकली दिल की
करे भी प्यार पर कितनी ही पहरेदारी नज़र
५४५.
साथ रहकर भी न कह पाये कभी दिल की बात
रह गयी प्यार छिपाये, हया की मारी नज़र
५४६.
वही हो तुम, वही मैं हूँ, वही है दुनिया भी
खो गयी जाने कहाँ, कैसे, वह कुँवारी नज़र
५४७.
‘गुलाब’ खुल न सका राज उसके जल्वों का
देखती हुस्न की जल्वागरी को हारी नज़र
५४८.
दिल में ये प्यार के वहम क्या हैं !
तू ही बतला कि तेरे हम क्या हैं
५४९.
जब न कोई लगाव है हम से
ये इशारे क़दम-क़दम क्या हैं !
५५०.
तेरे वादों पे जिये जाते हैं
ये भी एहसान तेरे कम क्या हैं !
५५१.
तेरे रंगों में मिल गये हैं गुलाब
अब किसे क्या बतायें, ’हम क्या हैं’
५५२.
समझे न दिल की बात, इशारों को देखकर
देखा था हमने उनको, बहारों को देखकर
५५३.
धोखा ही हमने खाया हसीनों से है सदा
सावन समझ रहे थे, फुहारों को देखकर
५५४.
अच्छा है आप बाग़ में चुप ही रहें, गुलाब !
हँसते है लोग पाँच सवारों को देखकर
५५५.
तेरी अदाओं का हुस्न तो हम, छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म, छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
५५६.
कभी तो पहुँचेंगी तेरे दिल तक, हवा में उड़ती हुई ये तानें
हम अपनी दीवानगी का आलम, छिपा के ग़ज़लों में रख रहे हैं
५५७.
बिके तो राहों में ज़िंदगी की, न भूल पाये हैं पर तुझे हम
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का मातम, छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
५५८.
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को
तो हम भी तेरे ही दिल का सरगम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
५५९
कहाँ है कागज़ में रंगों-बू वह, कलम की जादूगरी तुम्हारी !
गुलाब ! तुमने कहा था हरदम, ‘छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं’
५६० .
फिर इस दिल के मचलने की कहानी याद आती है
मुझे, फिर, आज अपनी नौजवानी याद आती है
५६१ .
बहुत कुछ कहके भी उससे न कह पाया था प्यार अपना
तपिश सीने की बस आँखों में लानी, याद आती है
५६२ .
कहा क्या, कल कहूँगा क्या ! न यह कहता तो क्या कहता !
यही सब सोचते, रातें बितानी याद आती है
५६३ .
भुला पाता नहीं मैं पोंछना काजल पलक पर से
लटें आवारा, उस रुख़ से हटानी याद आती है
५६४ .
शरारत की हँसी आँखों में दाबे, नासमझ बनती
मेरी चुप्पी पे उसकी छेड़खानी याद आती है
५६५ .
कभी गाने को कहते ही लजाकर सिर झुका लेना
‘गुलाब’ अब भी किसीकी आनाकानी याद आती है
५६६ .
दर्द कुछ और सही, दिल पे सितम और सही
आपको इसमें खुशी है तो ये ग़म और सही
५६७ .
है जो धोखा ही सरासर हरेक अदा उनकी
हमको यह प्यार का थोड़ा-सा भरम और सही
५६८
वे भी दिन थे कि निगाहों में खिल रहे थे गुलाब
आज कहते हैं हमें और, तो हम और सही
५६९.
प्यार दिल में न अगर था तो बुलाया क्यों था !
हमसे मिलने का ख़याल आपको आया क्यों था !
५७०.
जब नज़र मोड़के, चुपके से चले जाना था
दो घड़ी के लिए सीने से लगाया क्यों था !
५७१.
हमको आँखें भी उठाने की मनाही थी अगर
आपने ख़ुदको सितारों से सजाया क्यों था !
५७२.
हमने माना कि बसे आपके दिल में थे गुलाब
आपने उनको मगर इतना सताया क्यों था !
५७३.
कैसा दुश्मन कि सर काट ले
और प्यारा भी लगता रहे !
५७४.
ख़ून का ही हमारे क़सूर
हाथ क्यों उनके रँगता रहे !
५७५.
कोई आयेगा तड़के, गुलाब !
दिल से कह दो कि जगता रहे
५७६.
खुल के आओ तो कोई बात बने
रुख़ मिलाओ तो कोई बात बने
५७७.
हमने माना की प्यार है हमसे
मुँह पे लाओ तो कोई बात बने
५७८
यों तो बातें बना रहे हैं गुलाब
तुम बनाओ तो कोई बात बने
५७९.
दिल में रहते थे कभी आपके हम, भूल गये !
उम्र भर की थी निभाने की कसम, भूल गये !
५८०.
वे भी दिन थे कि हमीं आये हरेक बात में याद
आज हर बात में कहते हैं कि हम भूल गये
५८१.
बड़े भोले हैं बड़े दूध के धोये हैं आज
पीके जब प्यार में बहके थे क़दम, भूल गये !
५८२.
हमसे काँटे भी निकलवाये थे तलवों के कभी
आके मंज़िल पे सभी राह के ग़म भूल गये !
५८३.
अब तो कहते हैं कि भाते ही नहीं हमको गुलाब
आपके दिल को कभी था ये वहम, भूल गये !
५८४.
प्यार का रंग हज़ारों से अलग होता है
यह इशारा कभी यारों से अलग होता है
५८५.
दिल हरेक चाँद-सी सूरत पे मचलता है, मगर
कोई इन चाँद-सितारों से अलग होता है
५८६.
वे न देखें तुझे, यह बात है कुछ और, गुलाब !
वरना यह रंग हज़ारों से अलग होता है
५८७.
कहने को तो वे हमपे मेहरबान बहुत हैं
फिर भी हमारे हाल से अनजान बहुत हैं
५८८.
वे भाँप ही लेते हैं निगाहों का हर सवाल
वैसे तो और बातों में नादान बहुत हैं
५८९.
खामोश पड़े दिल को तड़पना सिखा दिया
हम पर किसीके प्यार के एहसान बहुत हैं
५९०.
काँटों का ताज कौन पहनता है यह गुलाब
माना की खेल प्यार के आसान बहुत हैं
५९१.
यों तो दीवाना बताते हैं हमें लोग, मगर
कुछ तेरे प्यार की राहों की भी मजबूरी थी
५९२.
कुछ तो मजबूर किया उनकी अदाओं ने हमें
और कुछ अपनी निगाहों की भी मजबूरी थी
५९३.
प्यार की दी है सज़ा हमको, मगर यह तो कहो
‘क्या न इन शोख़ गुनाहों की भी मजबूरी थी ?’
५९४.
यों तो इस बाग़ में हँसने के लिए आये गुलाब
दिल से उठती हुई आहों की भी मजबूरी थी
५९५.
किसीका प्यार समझें, दिल्लगी समझें, अदा समझें
बता दे तू ही अब, ऐ ज़िंदगी ! हम तुझको क्या समझें
५९६.
हम अपने को भी उनकी धड़कनों में देख लेते हैं
उन्हींके हम हैं, वे हमको भले ही दूसरा समझें
५९७.
गुलाब ऐसे तो हर तितली से आँखें चार करते हैं
जो दिल की पंखड़ी छू ले उसीको दिलरुबा समझें .
५९८.
तेरा दर छोड़के जाने का कभी, नाम न लूँ
यों पिला दे कि कहीं और सुबह-शाम न लूँ
५९९.
तू मेरे प्यार की धड़कन तो समझता है ज़रूर
मैं भले ही कभी होठों से तेरा नाम न लूँ
६००.
यों न लहरा दे, मेरे आगे सुनहला आँचल
मैं हूँ मदहोश, कहीं बढ़के इसे थाम न लूँ !
६०१.
यह तो बतला कि खिलाये हैं भला क्यों ये गुलाब
है अगर जिद ये तेरी, इनसे कोई काम न लूँ
६०२.
हमें तो हुक्म हुआ, सर झुकाके आने का
नहीं ख़याल भी उनको नज़र उठाने का
६०३.
निगाहें बढ़के लिपटती रहीं निगाहों से
चले तो वक्त नहीं था गले लगाने का
६०४.
नहीं जो प्यार हो हमसे तो दोस्ती ही सही
गरज कि कुछ तो बहाना हो मुस्कुराने का
६०५.
गुलाब यों तो हज़ारों ही खिल रहे हैं यहाँ
है रंग और ही लेकिन तेरे दीवाने का
६०६.
ये सवाल है मेरे प्यार का, ये जवाब है तेरे रूप का
तुझे क्या बताऊँ मैं, दिलरुबा ! जो लिखा है दिल की किताब में !
६०७.
जो चढ़ा तो फिर न उतर सका, मेरी उम्र भर का ये था नशा
जिसे तू नज़र से पिला गया, उसे क्या मिलेगा शराब में !
६०८.
जो कहा ये मैंने कि, हमसफ़र ! कभी मेरी ओर भी हो नज़र
तो हँसा कि, ‘प्यार के नाम पर यही ग़म हैं तेरे हिसाब में’
६०९.
कभी तुम हुए भी जो सामने तो नज़र मिली न गले-गले
ये कसक, ये दर्द, ये तड़पनें, ये जलन है उसकी गुलाब में
६१०.
यों न मिलने में शरमाइए
दो घड़ी रुक भी तो जाइए
६११.
प्यार मुँह से न कहते बने
प्यार आँखों से जतलाइए
६१२.
शर्त है प्यार की, एक ही
ख़ुद तड़पिए तो तड़पाइए
६१३.
जान हाजिर है लेकिन हुजूर !
अपनी सूरत तो दिखलाइए
६१४.
सामने उनके चुप है गुलाब
कुछ भी कहिए तो शरमाइए
६१५.
हमको पानी ही पिलाया है, कोई बात नहीं
कुछ नशा यों भी तो आया है, कोई बात नहीं
६१६.
ज़िंदगी है कि हरेक हाल में कट जाती है
आपने दिल से भुलाया है, कोई बात नहीं
६१७.
आपको याद हमारी भी तो आयी होगी !
नाम मुँह पर नहीं आया है, कोई बात नहीं
६१८.
उनके नाखून कटाने की है चर्चा घर-घर
हमने सर भी जो कटाया है, कोई बात नहीं !
६१९.
फिर बहार आयेगी फिर बाग़ में फूलेंगे गुलाब
जी तो ऐसे ही भर आया है, कोई बात नहीं
६२०.
बात जो कहने की थी, होठों पे लाकर रह गये
आपकी महफ़िल में हम खामोश अक्सर रह गये
६२१.
एक दिल की राह में आया था छोटा-सा मुक़ाम
हम उसीको प्यार की मंज़िल समझकर रह गये
६२२.
क्यों किया वादा नहीं था लौटकर आना, अगर !
इस गली के मोड़ पर, हम ज़िंदगी भर रह गये
६२३.
कारवाँ गुजरे बहारों के भी सजधज कर गुलाब !
तुम हमेशा बाँधते ही अपना बिस्तर रह गये
६२४.
वह नज़र थी और जो दिल को उड़ाकर ले गयी
जब फिरी, हम अपनी क़िस्मत के बराबर रह गये
६२५.
यों तो आने से रहे घर पर हमारे, एक दिन
उम्र भर को वे हमारे दिल में आकर रह गये
६२६.
रौंदकर पाँवों से कहते, ‘खिल न क्यों पाते, गुलाब’!
दंग हम तो आपकी इस दिल्लगी पर रह गये
६२७.
उसने करवादी मुनादी शहर में इस बात की
कोई अब हमसे करे चर्चा न पिछली रात की
६२८.
हमने यह समझा कि है प्याला हमारे वास्ते
उसने कुछ ऐसी अदा से मुस्कुराकर बात की
६२९.
आज भाती हो न उसको तेरी पंखड़ियाँ, गुलाब !
कल मचेगी धूम दुनिया भर में इस सौग़ात की
६३०.
लाख चक्कर हों सुराही के, हमारा क्या है !
हम तो प्यासे रहे पानी के, हमारा क्या है !
६३१.
हँसके बहला भी लिया, रूठके तड़पा भी दिया
हम हैं मुहरे तेरी बाजी के, हमारा क्या है !
६३२.
उड़ रही है तेरे जूड़े की जो ख़ुशबू हर ओर
एक सिवा दिल की तसल्ली के हमारा क्या है !
६३३.
जब कहा उनसे, ’खिले आज तो होंठों पे गुलाब’
हँसके बोले कि, ‘हैं माली के, हमारा क्या है !’
६३४.
कहाँ है प्यार की कसम ! कहाँ हो तुम ! कहाँ हैं हम !
ढलान पर क़दम-क़दम, उतर रहा है कारवाँ
६३५.
मिलो न चाहे उम्र भर, मगर हो दिल के हमसफ़र
जली न आग जो उधर, उठा कहाँ से यह धुआँ !
६३६.
गुलाब ! अब भी डाल पर, भले ही तुम हो खिल रहे
कहाँ हैं सुर बहार के ! कहाँ हैं उनकी शोखियाँ !
६३७.
जो हमें कहते थे हरदम, ‘जान से तुम कम नहीं’
जान जाने का हमारी आज उनको ग़म नहीं
६३८.
हमने कागज़ पर उतारी हैं अदाएँ आपकी
चितवनों की शोखियाँ होंगी कभी ये कम नहीं
६३९.
आपकी नज़रों में, माना, हैं वही मस्ती के रंग
पर जो दीवाना बना दे दिल को वह मौसम नहीं
६४०.
बनके ख़ुशबू बाग़ की हद से निकल आये गुलाब
लाख अब कोई मिटाये, मिट सकेंगे हम नहीं
६४१.
आज हो चाहे दूर भी जाना, मेरे साथी, मेरे मीत !
लौटके फिर इस बाग़ में आना मेरे साथी, मेरे मीत !
६४२.
यों तो हरेक झोंके से हवा के प्यार की ख़ुशबू आती थी
दिल ने तुम्हींको एक था माना, मेरे साथी, मेरे मीत !
६४३.
मिल भी गये फिर आते-जाते, मिलके निगाहें फेर भी लो
गंध गुलाब की भूल न जाना, मेरे साथी, मेरे मीत !
६४४.
हम तो नहीं होठों से कहेंगे, ‘काट दी क्यों आँखों में रात’
पूछ लो अपने आप से ख़ुद ही, ‘अब ये कहाँ पहुँची है बात’
६४५.
यों तो, कभी उस चितवन से भी, प्यार की ख़ुशबू आती थी
पर थी उन्हें मिलने में झिझक क्या ! आँखों ही आँखों कर गये घात
६४६.
चाँदनी फीकी पड़ने लगी है, उड़ने लगा है चाँद का रंग
आके गुलाब को देख भी लो अब, बीत न जाये प्यार की रात
६४७.
लाकर हमारे होंठ तक प्याला पटक दिया
की दोस्ती भी उसने मगर दुश्मनी के साथ
६४८.
हमने तो खेल-खेल में ख़ुद को लुटा दिया
अच्छा नहीं था खेलना ऐसे किसीके साथ
६४९.
लायेगी रंग एक दिन चुप्पी गुलाब की
कुछ कह गये हैं वे भी बड़ी सादगी के साथ
६५०.
जो नज़र प्यार की कह गयी है, मुँह पे लाने की बातें नहीं हैं
हम सुना तो रहे बेसुधी में, वे सुनाने की बातें नहीं हैं
६५१ .
हमने माना कि तुम हो हमारे, याद करते रहोगे हमेशा
दूर जाने की बातें हैं पर ये, पास आने की बातें नहीं हैं
६५२ .
जो गुलाब ! आपने गीत गाये, उनमें धड़कन तो है प्यार की ही
पर वे मजबूरियाँ हैं दिलों की, गुनगुनाने की बातें नहीं हैं
६५३.
दिल साथ-साथ धड़के, अहसास बहुत इतना
इस राह में हम दोनों अनजान ही अच्छे हैं
६५४.
जो प्यार भी मिल जाये, यह बात कहाँ होगी !
हम आपकी नज़रों में मेहमान ही अच्छे हैं
६५५.
दाना भी गुलाब, उनको अपना न बना पाते
इस प्यार की दुनिया में नादान ही अच्छे हैं
६५६.
इस बेरुख़ी से प्यार कभी छिप नहीं सकता
तू भी है बेक़रार, कभी छिप नहीं सकता
६५७.
तू कुछ न कह, निगाहें कहे देती हैं सभी
रातों का यह ख़ुमार कभी छिप नहीं सकता
६५८.
मजबूरियाँ हों लाख छिपाने की प्यार को
हों जब निगाहें चार, कभी छिप नहीं सकता
६५९.
पत्तों ने ढँक लिया हो तेरा बाँकपन, गुलाब !
आयेगी जब बहार, कभी छिप नहीं सकता
६६०.
कुछ भी नहीं, जो हमसे छिपाते हो, ये क्या है !
मिलकर भी निगाहें न मिलाते हो, ये क्या है !
६६१.
दिन-रात याद करने का एहसान तो गया
इलज़ाम भूलने का लगाते हो, ये क्या है !
६६२.
थे और बहाने नहीं आने के सैंकडों
कहते हो ‘हमें क्यों न बुलाते हो,’ ये क्या है ! .
६६३.
माना, नहीं कबूल था मिलना गुलाब से
यह बात शहर भर को बताते हो, ये क्या है !
६६४.
अब न जाने की करो बात, क़रीब आ जाओ
खत्म होगी न यह बरसात, क़रीब आ जाओ
६६५.
पास रहकर भी रहें दूर उम्र भर के लिए
यह भी अच्छी है मुलाक़ात, क़रीब आ जाओ
६६६.
दो दिलों बीच ज़रूरत ही किसीकी क्या है !
तुमसे कहनी है कोई बात, क़रीब आ जाओ
६६७.
फिर न लौटेंगे कभी बाग़ की डालों पे गुलाब
फिर न पाओगे ये सौग़ात, क़रीब आ जाओ
६६८.
दिल तो मिलता है, निगाहें न मिलें भी तो क्या !
कह दे आँखों से, न ये होंठ हिलें भी तो क्या !
६६९.
उड़के ख़ुशबू तो उन आँखों की मिली है हरदम
हमको नज़रों के इशारे न मिलें भी तो क्या !
६७०.
उनके दिल में तो बसी तेरी ही रंगत हैं, गुलाब !
फूल कितने ही बहारों में खिलें भी तो क्या !
६७१.
यह सितारों से भरी रात हमारी कब थी !
आपके प्यार की सौग़ात हमारी कब थी !
६७२.
कोई छींटा कभी उड़ता हुआ आया भी, तो क्या !
झमझमाती हुई बरसात हमारी कब थी !
६७३.
था वही बाग़, वही फूल, वही तुम थे, मगर
फिर बहारों से मुलाक़ात हमारी कब थी !
६७४.
आख़िरी वक्त निगाहों में खिल उठे थे गुलाब
उनकी महफ़िल में चली बात हमारी कब थी !
६७५.
मुँह खोलके हमसे जो मिलते न बना होता
कुछ तुमने निगाहों से कह भी तो दिया होता
६७६.
कोई न अगर दिल के पर्दों में छिपा होता
यों किसने खयालों को रंगीन किया होता !
६७७.
राहें थी अलग तो क्या ! हम मिल तो कभी जाते !
कुछ तुमने कहा होता ! कुछ हमसे सुना होता !
६७८.
इन शोख़ अदाओं का सब खेल हमींसे है
होते न अगर हम, तो, क्या इनका हुआ होता !
६७९.
वैसे तो गुलाब उनका इस बाग़ पे कब्ज़ा है
हम देखते, ख़ुशबू को रुकने को कहा होता
६८०.
आप क्यों दिल को बचाते हैं यों टकराने से !
ये वो प्याला है, जो भरता है छलक जाने से
६८१.
हैं वही आप, वही हम हैं, वही दुनिया है
बात कुछ और है, थोड़ा-सा मुस्कुराने से
६८२.
मोतियों से भी सजा लीजिये पलकों को कभी
रंग चमकेगा नहीं, आईना चमकाने से
६८३.
फ़ासिला थोड़ा-सा अच्छा है आपमें हममें
खत्म हो जायगा यह खेल पास आने से
६८४.
देखते-देखते कुछ यों हवा हुए हैं गुलाब
ज्यों गया हो कोई बीमार के सिरहाने से
६८५.
इन आँसुओं से तुम अपना आँचल सजा रहे थे, पता नहीं था
मुझे मिटाकर भी मेरी क़िस्मत बना रहे थे, पता नहीं था
६८६
दिया हर उम्मीद का बुझाकर, सुला लिया अपना दिल तो हमने
मगर उन आँखों में प्यार की लौ जगा रहे थे, पता नहीं था
६८७
कहाँ हैं रंगों की शोखियाँ वे ! कहाँ हैं अब वे बहार के दिन !
गुलाब ! तुम बाग़ भर में बस एक हवा रहे थे, पता नहीं था
६८८.
ज़माने भर की निगाहों से टालकर लाये
हम उनके प्यार को कितना सँभालकर लाये !
६८९.
सभी को एक ही चितवन से कर दिया खामोश
यहाँ थे लोग भी, क्या-क्या सवाल कर लाये !
६९०.
फ़िज़ा बहार की तुझसे ही सज रही है, गुलाब !
भले ही फूल कई मुँह भी लाल कर लाये
६९१.
बात ऐसे तो बहुत होके, रही अपनी जगह
हमने पायी है उसी दिल में सही अपनी जगह
६९२.
यों तो होने को हुईं उनसे हज़ारों बातें
फिर भी एक बात जो दिल में थी, रही अपनी जगह
६९३.
शर्त रहती है किसे याद बहारों की, गुलाब !
छोड़िए जो भी कही, जो न कही, अपनी जगह
६९४.
यों तो सभी से मेल-मुहब्बत है राह में
हरदम रहा है पर तेरा दर ही निगाह में
६९५.
क्या-क्या न लेके आये ग़ज़ल में सवाल हम
सब का जवाब उसने दिया एक ‘वाह’ में
६९६.
क्या कद्र तेरी ज़र्द पँखुरियों की हो, गुलाब !
ख़ुशबू तो लुट चुकी है किसी ऐशगाह में
६९७.
दिल को हमारे प्यार का धोखा तो नहीं है
यों आँख मिलाना, मगर, अच्छा तो नहीं है
६९८.
लाने का यहाँ और ही मकसद है तुम्हारा
जो हमको दिखाते हो, तमाशा तो नहीं है
६९९.
आते हैं किस अदा से वे घर पर हमारे आज
कहते हुए, ‘आने का इरादा तो नहीं है’
७००.
कहिए तो उनकी हूबहू तस्वीर बना दें
यह सच है, हमने आँख से देखा तो नहीं है
७०१.
कहते हैं देखकर वे तड़पना गुलाब का
‘इसमें कोई क़सूर हमारा तो नहीं है’
७०२.
आप, और घरपे हमारे, क्या खूब !
दिन में उग आये हैं तारे, क्या खूब !
७०३.
आख़िर आ ही गये हम आपके पास
एक तिनके के सहारे, क्या खूब !
७०४.
उनकी आँखों में खिल रहे थे गुलाब
हमने कागज़ पे उतारे, क्या खूब !
७०५.
जो हलकी-सी दिल में कसक प्यार की थी
बनी ज़िंदगी भर का ग़म धीरे-धीरे
७०६.
कभी कोई मंज़िल भी मिलकर रहेगी
बढ़ाता चल, ऐ दिल ! क़दम धीरे-धीरे
७०७.
गुलाब एक नाचीज़-सी चीज़ थे, पर
ग़ज़ब ढा रही है कलम धीरे-धीरे
७०८.
देखकर हमको मुँह फिरा, बैठे
प्यार करने का ढंग अच्छा है !
७०९.
उनपे रोने का कुछ असर तो हुआ
हँस पड़े ‘जलतरंग अच्छा है’
७१०.
खून अपना बहा रहे हैं गुलाब
लोग कहते हैं, ‘रंग अच्छा है’
७११.
आप क्यों देखके आईना मुँह फिरा बैठे
लीजिए आपकी चर्चा ही छोड़ दी हमने
७१२.
क्या हुआ फूल जो होंठों से चुन लिए दो-चार !
और ख़ुशबू तेरी ताजा ही छोड़ दी हमने
७१३.
पूछा उनसे जो किसीने कभी, ‘कैसे हैं गुलाब ?’
हँसके बोले कि वो बगिया ही छोड़ दी हमने
७१४.
मिलके नहीं बिछुड़ेंगे जहाँ हम, ऐसा भी कोई देश तो होगा
हम न रहेंगे, तू न रहेगा, प्यार मगर यह शेष तो होगा
७१५.
हमको तड़पता देखके भी, क्या तू ये नज़र मोड़े ही रहेगा !
लाख है पत्थर, दिल में मगर कुछ प्यार का भी लवलेश तो होगा
७१६.
रंग गुलाब का उड़ने लगा है, लौट रही हैं शोख़ हवाएँ
जिसमें हमें पहिचान ले दुनिया, ऐसा भी कोई वेष तो होगा !
७१७.
है ये किस शोख़ की गली, यारो !
लोग चलते कलेजा थाम के हैं
७१८.
जब हमें लौटना नहीं है यहाँ
फिर ये वादे तेरे किस काम के हैं !
७१९.
उनके आने से आ गयी है बहार
वरना हम तो गुलाब नाम के हैं
७२०.
हम अक्स हैं तेरे आईने के, कभी तो बढ़कर गले लगाले
रहे हों खामोश, प्यार की पर, हमारे दिल में कमी नहीं है
७२१.
गुलाब ! जिसने भी हँसके देखा, उसीके तुम उम्र भर रहे हो
जो सच कहें तो सभी हैं अपने, यहाँ कोई अजनबी नहीं है
७२२.
आ, कि अब भोर की यह आख़िरी महफ़िल बैठे
पहले तू बैठ, तेरे बाद मेरा दिल बैठे
७२३.
तेरी दुनिया थी अलग, तेरे निशाने थे कुछ और
क्या हुआ, हम जो घड़ी भर को कभी मिल बैठे !
७२४.
रंग खुलता है तभी, तेरी पँखुरियों का, गुलाब !
जब कोई लेके इन्हें, उनके मुकाबिल बैठे
७२५.
प्यार की बात न कर, प्यार को बस रहने दे
दिल में कुछ और तड़पने की हवस रहने दे
७२६.
छीन मत हमसे पुतलियों की थिरकती ख़ुशबू
अपनी लट खोल के बिखरा दे, बहस रहने दे
७२७.
खींच लाये हैं उन्हें आपकी बाँहों में गुलाब
थोड़ा काँटों को भी इस बात का जस रहने दे
७२८.
दिल तो हमने ही लगाया है, आप चुप क्यों हैं !
दाँव यह हमने गँवाया है, आप चुप क्यों हैं !
७२९.
लोग क्या-क्या नहीं कहते हैं हमें दुनिया में !
आपका नाम भी आया है, आप चुप क्यों हैं !
७३०.
ऐसे गुमसुम नहीं हमने कभी देखे थे गुलाब
मुँह भी दुनिया ने फिराया है, आप चुप क्यों हैं !
७३१.
फिर मुझे नरगिसी आँखों की महक पाने दो
फिर बुलाते हैं छलकते हुए पैमाने दो
७३२.
क्या पता, फिर कभी हम मिल भी सकेंगे कि नहीं !
आज की रात तो आँखों में गुज़र जाने दो
७३३.
रंग उनका भी बदलता नज़र आयेगा, गुलाब !
थोड़ा इन प्यार की आहों में असर आने दो
७३४.
जुही में फूल जब आये, हमें भी याद कर लेना
नज़र जब ख़ुद से शरमाये, हमें भी याद कर लेना
७३५.
मुसाफिर राह में यों तो, हज़ारों साथ चलते हैं
कोई जब दिल को छू जाये, हमें भी याद कर लेना
७३६.
कभी आँखों ही आँखों बात कुछ हमसे भी होती थी
कभी हम भी तुम्हें भाये, हमें भी याद कर लेना
७३७.
तुम्हारे प्यार की धुन में, खिला तो सौ गुलाब आये
भले ही हम न खिल पाये, हमें भी याद कर लेना
७३८.
रूप की सादगी पे मत जायें
दूध में थोड़ी-सी शराब भी है
७३९.
फीका-फीका हुआ है बाग़ का रंग
यों तो होने को एक गुलाब भी है
७४०.
आप क्यों दिल के तड़पने का बुरा मान गये !
आप से कुछ नहीं कहते हैं, हम तो चुप ही हैं
७४१.
सुर्ख़ बादल जो उमड़ आये थे आँखों में कभी
बनके आँसू वही बहते हैं, हम तो चुप ही हैं
७४२.
उनकी आँखों में खिले हैं कुछ इधर ऐसे गुलाब
ख़ुद वही छेड़ते रहते हैं, हम तो चुप ही है
७४३.
मैं तेरे प्यार के काबिल तो नहीं था, लेकिन
कुछ तेरे दिल में धड़कता हुआ लगा है मुझे
७४४.
पास आते ही निगाहों में खिल उठे हैं गुलाब
फिर कोई अपनी तरफ देखता लगा है मुझे
७४५.
रात भर जंगल पहाड़ों में भटकता फिर रहा
है हमीं-सा चाँद भी क़िस्मत का मारा, हो, न हो
७४६.
हमसे छिप सकती नहीं रंगत किसीके प्यार की
दिल तो धड़का है, निगाहों का इशारा हो, न हो
७४७.
यों तो शोभा बढ़ गयी इस बाग़ की तुझसे, गुलाब !
प्यार की शोखी, मगर, उसको गवारा हो, न हो
७४८.
प्यार हमने किया, उनपर एहसान क्या,
प्यार कहकर बताना नहीं चाहिए
रागिनी एक दिल में जो है गूँजती
उसको होंठों पे लाना नहीं चाहिए

७४९. कौन जाने कि अगले क़दम पर तुझे
उनके आँचल की ठंडी हवा भी मिले
ठेस गहरी लगी आज दिल में, मगर
हारकर बैठ जाना नहीं चाहिए
७५०.
ज़िंदगी के थपेड़ों से मुरझा गये
हम भी थे उनकी नज़रों के काबिल कभी
बाग़ में कह रहा था गुलाब एक यों
‘हमको ऐसे भुलाना नहीं चाहिए’
७५१.
गंध बनकर हवा में बिखर जायँ हम
ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम
तू न देखे हमें बाग़ में भी तो क्या !
तेरा आँगन तो ख़ुशबू से भर जायँ हम
७५२.
रात काँटों पे करवट बदलते कटी,
हमको दुनिया ने पल भर न खिलने दिया
आयेंगे कल नये रंग में फिर गुलाब
आज चरणों पे उनके बिखर जायँ हम
७५३.
उनसे उम्मीद क्या, बाद मरने के वे,
दो क़दम आके कंधा भी देंगे कभी
जो अभी डूबता देखकर भी हमें,
एक तिनके का देते सहारा नहीं !
७५४.
तू खिला इस तरह जो रहेगा, गुलाब !
प्यार भी उनकी आँखों में आ जायगा
तेरी ख़ुशबू तो उन तक पहुँच ही गयी,
रुकके जूड़ा भले ही सँवारा नहीं