हंसा तो मोती चुगे_Hansa To Moti Chuge
ग़ज़ल कई शेरों का समाहार होता है। एक ही ग़ज़ल के शेर विभिन्न भाव-भूमि पर स्थित होकर अपना विशिष्ट अस्तित्व रख सकते हैं। वे माला के मोतियों की तरह परस्पर संपृक्त होते हुए भी अपनी अस्मिता बनाए रखते हैं। ग़ज़ल में जीवन की सभी प्रकार की अनुभूति को व्यक्त करने की क्षमता है। गुलाबजी की ग़ज़लों में से चुने हुए इन शेरों को भाव के आधार पर प्रेमानुभूति, परोक्षानुभूति, देवानुभूति, विविध – इन नामों से चार भागों में बाँटा गया है।
गायन के चुनाव की सुगमता के लिए एक गजल के तीन शेरों की तिकड़ी बनायी गयी है।
• “आपकी गुलाबबाड़ी की बहुत सैर करता हूँ. . . आपने हिन्दी में ग़ज़लों का बहुत ही सफल प्रयोग किया है और वह भी उर्दू से अलग रहकर. बहुत से शेर ग़ज़लों से हटकर मुहावरे बन गये हैं”
-रायकृष्णदास
“मार्मिक संवेदना और सहज अभिव्यंजना के समाहार में इन ग़ज़लों की कला आप अपना आदर्श बन गयी हैं”
-आचार्य विश्वनाथ सिंह