hansa to moti chuge

७५५.
जो यहाँ पे आये थे सैर को, नहीं फिर वे लौटके घर गये
जो कहीं न ठहरे थे उम्र भर, वे यहाँ पहुँचके ठहर गए
७५६.
जो थे रट लगाते ये हर घड़ी कि क़सम न टूटेगी प्यार की
वही सामने से अभी-अभी, बड़ी बेरुख़ी से गुजर गये
७५७.
न चमक है मुँह पर न कोई लय, नहीं अलविदा का भी होश है
ये सफ़र वे कैसे करेंगे तय, जो क़दम उठाते ही डर गये !
७५८.
यहाँ हर तरफ है धुआँ-धुआँ, रहें हम तो कैसे रहें यहाँ !
थे हसीन जिनसे ये बस्तियाँ, वे गुलाब आज किधर गये
७५९.
जिनको सुर भाते ग़ज़ल के वे तो कब के जा चुके
अब इन्हें गाये तो क्या ! कोई नहीं गाये तो क्या !
७६०.
फिर से बिछुड़े हुए साथी जहाँ मिल जाते हों
दूर इस राह में, ऐसा भी कोई होगा मुकाम
७६१.
यों तो मरती ही रही है ज़िंदगी
यह कभी मरने से जी जाती भी है
७६२.
इस तरफ एक किनारा है, मगर
उस तरफ कोई किनारा तो हो !
७६३.
अँधेरे ही अँधेरे होंगे, आगे
पड़ाव अगला जहाँ कल शाम लेंगे
७६४.
एक तस्वीर थरथरायी हुई
यही दुनिया की यादगार है आज
७६५.
अब हमारे वास्ते दुनिया ठहर जाये तो क्या !
बाद मर जाने के जी को चैन भी आये तो क्या !
७६६.
वही हैं सभी प्यार की रंग-रलियाँ
ये दुनिया भरी की भरी, छूटती है
७६७.
क्या, किससे पूछिए कि जहाँ मुँह सिये हों लोग !
है नाम के ही शहर ये, वीरान बहुत हैं
७६८.
कौन जाने ! उस तरफ, कोई किनारा हो, न हो
मिल भी जाओ आज, कल मिलना हमारा हो, न हो
७६९.
कुछ भी जाना तो हमने ये जाना, रात है एक ही बस हमारी
जो मिले प्यार के आज साथी, उनसे मिलना दुबारा नहीं है
७७०.
मुझे यक़ीन है, जाकर भी मैं रहूँगा यहीं
मेरे हर लब्ज़ में धड़का करेगा दिल मेरा
७७१.
ये नज़ारे फिर कहाँ ! यह साँझ, ये रंगीनियाँ
नाव यह माना कि फिर इस घाट पर आने को है
७७२.
वे लोग जा चुके जिन्हें फूलों से प्यार था
कदमों पे अब ये बाग़ भी सारे हुए, तो क्या !
७७३.
यह तो अच्छा है कि बिस्तर लग गया है बाग़ में
हम कहाँ ये फूल पाते घर सजाने के लिए !
७७४.
यह साज़ बेसुरा भी गनीमत है, दोस्तो !
कल, लाख पुकारे कोई, बोलेंगे हम नहीं
७७५.
आप, हम और कुछ भी नहीं !
सब वहम और कुछ भी नहीं !
७७६.
लौ कहीं और भी कम न हो
और कम और कुछ भी नहीं
७७७.
उनके अलबम में सूखे गुलाब
आज हम और कुछ भी नहीं
७७८.
अपनी नागिन-सी लटें खोल दी होंगी उसने
हम न होंगे तो क़यामत नहीं आयी होगी
७७९.
चल तो रहे हैं चाल बड़ी सूझ-बूझ से
उठने को है बिसात, मगर भूल रहे हैं
७८०.
पता नहीं कि कहाँ रात गिरी थी बिजली
कहीं से कान में आयी थी चीख की आवाज
७८१.
चिराग बुझ न गये हों कहीं मकानों के
हवा में तैरती आती हैं सिसकियाँ कैसी !
७८२.
है वही शोख़ हँसी मुँह पे शमा के अब भी
फ़र्क आया न कोई, मौत से परवाने की
७८३.
मिले तो यों कि कोई दूसरा सहा न गया
गये तो ऐसे, कि जैसे कभी रहे ही नहीं
७८४.
सो न जाये कोई चुप करवटें बदलता हुआ
आख़िरी प्यार की है रात, करीब आ जाओ
७८५.
ये किस मंज़िल पे ले आयी है तू, ऐ ज़िंदगी ! मुझको
कि अब सूरत भी मेरी मुझसे पहिचानी नहीं जाती !
७८६.
कहीं पड़ाव के पहले ही नींद घेर न ले
कुछ और तेज सुरों में क़दम बढ़ाते चलो
७८७.
कहाँ से लौ उतर आयी है, इसको मत पूछो
तुम्हें तो बस कि दिये से दिया जलाते चलो
७८८.
फूँक देना न इसे काठ के अंबार के साथ
साज़ यह हमने बजाया है बड़े प्यार के साथ
७८९.
फ़िक्र क्या ! अब तो नज़र आने लगा है उनका घर
बीच में बस मील के दो-चार पत्थर रह गये
७९०.
कुछ तो है बेबसी की न आती है मौत भी
मछली तड़प रही है मछेरे के जाल में
७९१.
न पूछो, क्या मिला दुनिया से हमको
तुझीमें, मौत ! अब आराम लेंगे
७९२.
इस तरह गोद में काँटों की सो रहे हैं गुलाब
जैसे आया हो तड़पने से दो घड़ी आराम
७९३.
नहीं कोई भी मरने के सिवा अब काम बाकी है
हमारी ज़िंदगी की बस वही एक शाम बाकी है
७९४.
सर पटकती है शमा लाश पे परवाने की
कोई पूछो भी तो उससे कि जलाया क्यों था
७९५.
थीं गुलजार ये बस्तियाँ जिनके दम से
गये वे कहाँ बेरहम धीरे-धीरे !
७९६.
हमको सूरज-सा कभी देखा था उठते आपने
अब हमारे डूब जाने का भी मंज़र देखिए
७९७.
कोई तो ऐसा भी होगा जो फिर से देगा छेड़
जहाँ से, साज़ को हमने बजाके छोड़ दिया
७९८.
देखकर ही जिसे आ जाती बहारों की याद
आँधियो ! फूल तो एक बाग़ में छोड़ा होता !
७९९.
सिर्फ आँचल के पकड़ लेने से नाराज थे आप
अब तो खुश हैं कि ये दुनिया ही छोड़ दी हमने
८००.
उन्हींको ढूँढ़ती फिरती थी आँखें, जानेवाले की
न करते इंतज़ार ऐसे, किसी की रात ढल जाती !
८०१.
कोई आया था लटें खोले हुए पिछली रात
आख़िरी वक्त, ये तकदीर बदलती, देखी
८०२.
आपने घूँघट भी न उठाया
और ये रात तमाम हुई है
८०३.
उधर राह भी देखता होगा कोई
क़दम जिस तरफ ये बढ़े जा रहे हैं
८०४.
दिल में एक हूक-सी उठती है आईने को देख
क्या-से-क्या हो गए गर्दिश से हम ज़माने की !
८०५.
ज़रा अपने आँचल का साया तो कर लो
दिया हूँ, हवा से बुझा चाहता हूँ
८०६.
रहूँ होश में, जब ये पर्दा उठाओ
तुम्हींमें तुम्हें देखना चाहता हूँ
८०७.
कहीं ऐसा न हो, मिलें जब आप
कहनेवाला हो चुप, कहानी का
८०८.
पाँव धीरे से रखना, हवा !
फूल सोये हैं करवट लिये
८०९.
सब हाथ मल रहे हैं खड़े, और ज़िंदगी
उलझाके हर नज़र में नज़र, डूब रही है
८१०.
इस बयावान के आगे भी शहर है, ऐ दोस्त !
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है
८११.
उनकी महफ़िल है, शराब उनकी है, प्याला उनका
हम तो दो घूँट चले पीके, हमारा क्या है !
८१२.
हुआ क्या जो सब उठके जाने लगे
अभी बात भी कह न पाये थे हम
८१३.
मुझे हँसके अब विदा दो, मेरी ज़िंदगी का ग़म क्या !
ये समझ लो, आज दुल्हन साजन के घर गयी है
८१४.
आज, दुल्हन को बुलावा है घर पे साजन के
माँग सखियों ने सँवारी है, इसे कुछ न कहो
८१५.
साथ छूटा है हरेक प्यार के राही का जहाँ
एक इस राह में ऐसा भी शहर आता है
८१६.
ज़िंदगी के ठाठ पर मत जाइए
यह निगाहें फेर लेगी एक दिन
८१७.
आ गयी किस घाट पर यह नाव दिन ढलते हुए
धार के साथी सभी मुँह फेरकर चलते हुए
८१८.
लाख दस्तक दे हवाएँ आके इस डाली पे आज
फूल जागेंगे नहीं, आँखें, मगर, मलते हुए
८१९.
जो पूछा भी उससे कि फिर कब मिलोगे
तो बस मुस्कुराकर चला जा रहा है
८२०.
जिसे देखने को खड़ा था ज़माना
वो पर्दा गिराकर चला जा रहा है
८२१.
कोई यह भी तो कहे, इसका नशा कैसा है
यह जो प्याली बढ़ी आती है हर क़दम के साथ
८२२.
जहाँ पे छूटते जाते हैं राह के साथी
ये बीच-बीच में आती हैं बस्तियाँ कैसी
८२३.
यों तो दुनिया तेरी हर चाल समझते हैं हम
ख़ुद ही बाज़ी ये मगर मात हुई जाती है
८२४.
खुली-खुली-सी खिड़कियाँ, लुटी-लुटी-सी बस्तियाँ
बसे थे जो कभी यहाँ, गये वे छोड़कर कहाँ !
८२५.
क्या किससे पूछिए कि जहाँ मुँह सिये हों लोग
हैं नाम के ही शहर ये, वीरान बहुत हैं
८२६.
हर नज़र खामोश है, हर घर से उठता है धुआँ
यह शहर का शहर ही लूटा हुआ लगता है आज
८२७.
आँखों-आँखों में इशारा करके आँखें मूँद लीं
रुकके दम भर पूछ तो लेते कि क्या समझे हैं हम
८२८.
गये जो आने का वादा करके, चले भी आयें कि वक्त कम है
हदें भी हों ज़िंदगी की आगे, क़रार मिलने का पर यहीं है
८२९.
यह भी ताकत न रही, चार क़दम उठके चलूँ
हाय ! कब उसकी गली का पता लगा है मुझे
८३०.
हटा भी लो पर्दा, ज़रा सामने से
तुम्हें देख लूँ भर नज़र चलते-चलते
८३१.
फ़िक्र क्या तुझको, कहाँ तक जायगा यह कारवाँ
बाँध ले बिस्तर, मुसाफिर ! तेरा घर आने को है
८३२.
ये सितार बज उठे यों, तेरे तोड़ने के पहले
कि तड़प ले कुछ तो दुनिया, मेरे छोड़ने के पहले
८३३.
ये घुटा-घुटा-सा मौसम, ये रुकी-रुकी हवाएँ
मेरे पास बैठ जाओ, मुझे नींद आ रही है
८३४.
न बाग़ है, नहीं भौंरे, न तितलियाँ, न गुलाब
उठा वसंत का डेरा, कहीं भी कोई नहीं
८३५.
कठपुतली का खेल दिखाने, कोई हमें लाया था यहाँ
प्यार तो बस था एक बहाना, मेरे साथी, मेरे मीत !
८३६.
झाँझर नैया, डाँड़ें टूटीं, नागिन लहरें, तेज हवा
टिक न सकेगा पाल पुराना, मेरे साथी, मेरे मीत !
८३७.
उफ़ रे खामोशी ! नहीं आती कोई आवाज भी
हमने हर पत्थर से अपने सर को टकराने दिया
८३८.
आँधियो ! हाजिर है अब यह फूल झड़ने के लिए
यह मिहरवानी बहुत थी, हमको खिल जाने दिया
८३९.
मज़मा उठा-उठा है, झुकी आ रही है शाम
मेले से हम अब लौटकर घर जायँ तो अच्छा
८४०.
कुछ तो आगे, इस गली के मोड़ पर आने को है
डर न ऐ दिल ! आज कोई हमसफ़र आने को है
८४१.
कभी, हमसफ़र ! यहाँ हम न हों, तेरी चितवनें भी ये नम न हों
ये अदाएँ प्यार की कम न हों, कभी हम भी जिनमें सँवर गये
८४२.
बेआस चलते-चलते, राही तो थकके सोया
मंज़िल का अब इशारा हो भी अगर, तो क्या है !
८४३.
सैकड़ों छेद हैं इसमें, मालिक !
अब ये प्याला ही दूसरा देना
८४४.
यों तो चक्कर था सदा पाँव में दीवाने के
नींद क्या खूब है आयी तेरे दर के आगे !
८४५.
दो घड़ी और भी ठहर न सके !
जानेवाले ! ये क्या किया तुमने !
८४६.
ज़िंदगी की क़िताब खत्म हुई
मुड़के देखा न हाशिया तुमने
८४७.
मंज़िल हो आख़िरी यही, यह हो नहीं सकता
आगे गयी है राह इस आरामगाह से
८४८.
एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
लौट जाने का बहाना खूब है !
८४९.
बेकहे आये, चले भी बेकहे
खूब था आना ! ये जाना खूब है !
८५०.
यादें ही ग़नीमत हैं इन प्यार की राहों में
बिछुड़े हुए साथी से, मिलना न दुबारा है
८५१.
कोई पहिचाना हुआ चेहरा नहीं है भीड़ में
अब हमें भी अपने घर को लौट जाना चाहिए
८५२.
बड़ी हसरतों से आयी मुझे नींद उनके दर पर
मेरी ज़िंदगी ठहर जा, इसे तोड़ने के पहले
८५३.
आज मिल जायँ, जिनको मिलना है
फिर, यहाँ कौन इसके बाद आया !
८५४.
शराब आख़िरी घूँट तक पी चुके हम
ये प्याला जो हाथों से छूटे, तो छूटे
८५५.
दो घड़ी मुँह से लगाकर किसीने फेंक दिया
एक टूटे हुए प्याले की तरह हम हैं आज
८५६.
जब तक सजाके ख़ुद को, हम आते हैं मंच पर
पर्दा ही सामने का गिराते हो, ये क्या है !
८५७.
आपके प्यार की पहिचान माँगते थे लोग
सर हम अपना न कटाते तो और क्या करते !
८५८.
आज तो मन की प्यास बुझा दो, कल हों कहाँ हम,किसको पता!
डाल में फिर से जुड़ न सकेंगे, टूटे हुए पीपल के पात
८५९.
फूल चुभते थे जिनको, वही
आग पर से चलाये गये
८६०.
अब ये छोटा-सा सफ़र खत्म हुआ ही समझें
बुलबुले उठके किनारों से बात करते हैं
८६१.
कोई तो और भी महफ़िल वहाँ सजी होगी
उठाके चाँद-सितारे जिधर गयी है रात !
८६२.
एक वीरान-सा मैदान शहर के आगे
क्या पता और दें हम, दोस्त ! वही अपनी जगह
८६३.
दूर मंज़िल, साथ छूटा, पाँव थककर चूर हैं
और झुकती आ रही है शाम सिर पर, क्या करें !
८६४.
ये कैसी बस्ती है जिसकी हद में, गये हैं उठ-उठके लोग सारे
सभीको मिट्टी के ये घरौंदे लुभा रहे थे, पता नहीं था
८६५.
धूल से मुँह मोड़ना कैसा, गुलाब !
धूल ही बिस्तर बनेगी एक दिन
८६६.
इसके आगे भी, कोई राह गयी होगी जरूर
हर मुसाफिर जहाँ अड़ता-सा नज़र आता है
८६७.
दिखा दे जोर दिखाना हो जो तुझे, तूफान !
उठेगा अब न कहीं बुलबुला भी पानी में
८६८.
वह, जिसको आखिरी मंज़िल समझ लिया तूने
वह, तेरे अगले क़दम के सिवा कुछ और नहीं
८६९.
फिर नये ढंग से जूड़े को सजा कर आना
हाथ मेंहदी से रचाये मेरे जाने के बाद
८७०.
मैं किसी और की नज़रों से देख लूँगा तुम्हें
फूल जब होंगे पराये मेरे जाने के बाद
८७१.
कुछ कहे कोई, हमें लौटके आना है यहाँ
दिल ये कहता है, मुलाक़ात अभी आधी है
८७२.
आज तो मिलती है उन आँखों की खुशबू दूर से
क्या पता कल राह में यह भी सहारा हो न हो
८७३.
खत्म रंगों से भरी रात हुई जाती है
ज़िंदगी भोर की बारात हुई जाती है
८७४.
है धुआँ आज नदी पर, जलाके नाव अपनी
दिलजला कौन किनारों से अलग होता है !
८७५.
फूलों से लदा था बाग़ जहाँ, हम-तुम कल झूमते आये थे
अब राम ही जाने, कब इसकी, पत्ती-पत्ती नीलाम हुई
८७६.
देखिए, टूटी हैं कब ये तीलियाँ
जब नहीं उड़ने की ताकत रह गयी !
८७७.
ज़िंदगी, रेत के टीलों में गुजारी हमने
इस बयावान में दो-चार क़दम और सही
८७८.
दिये तो हैं, रौशनी नहीं है, खड़े हैं बुत, ज़िंदगी नहीं है
ये कैसी मंज़िल पर आ गये हम कि दोस्त हैं, दोस्ती नहीं है !
८७९.
बुझा-बुझा, सर्द-सर्द-सा कुछ, है अब भी सीने में दर्द-सा कुछ
पड़े हों मुँह ढँकके हम भले ही, मगर तबीयत भरी नहीं है
८८०.
अब खुशी क्या हो तेरे बाग़ में आने से बहार !
देखता राह, कोई फूल तो मुरझा ही गया
८८१.
राख पर अब उनकी लहरायें समंदर भी, तो क्या !
सो गये जो उम्र भर हसरत लिये बरसात की
८८२.
बहुत से वक्त ऐसे भी कटे हैं, जब कि घबराकर
ये सोचा मैंने मन में, मैं नहीं होता तो क्या होता
८८३.
दी थी आवाज बहुत डूबनेवाले ने, मगर
बुलबुला सिर्फ किनारों की नज़र तक पहुँचा
८८४.
आखिर इस दिल की पुकारों में तुझको देख लिया
डूबते वक्त, किनारों में तुझको देख लिया
८८५.
अब खुला राज कि इस लब्ज़ का मानी क्या है
पूछो अब आके मेरे दिल से, ‘जवानी क्या है’
८८६.
यह तो बतलाओ कि हम कैसे फिर मिलेंगे यहाँ
तीर पर लौटती लहरों की चिन्हानी क्या है
८८७.
आये जब ताब देखने की नहीं
खूब दर्शन नसीब होता है !
८८८.
हज़ारों थे वादे, हज़ारों थीं क़समें
मगर सब भुलाकर चला जा रहा है
८८९.
ये हमने माना कि हरदम चलेगा दौर यही
मिलेगा वह कहाँ प्याला जो गिरके टूट गया
८९०.
ज़माना हो गया, आँखों का खेल चलते हुए
गले से आज तो लगिए कि जा रहा हूँ मैं
८९१.
ये प्यारभरी रातें, ये दिल कहाँ मिलेंगे !
यह ज़िंदगी दुबारा हो भी अगर, तो क्या है !
८९२.
मुट्ठी में अब ये चाँद-सितारे हुए तो क्या !
मरने के बाद आप हमारे हुए तो क्या
८९३.
दोस्त कर लेंगे याद मरने पर
दिल की बदनामियों में नाम भी है
८९४.
आँखों-आँखों ही लिपट जाते गले से आपके
आप अब आये हैं जब इतना भी दम में दम नहीं