hansa to moti chuge

८९५.
कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है
ये कमाल है तेरे हुस्न का कि नज़र का मेरी फ़ितूर है
८९६.
तू भले ही हाथ न थाम ले, कभी मुझको अपना पता तो दे
कि भटक न जाऊँ मैं राह में, तेरा दर बहुत अभी दूर है
८९७.
जो ख़याल में भी न आ सके, उसे प्यार भी कोई क्या करे !
तू ख़ुदा भले ही रहा करे, मुझे नाख़ुदा पे ग़रूर है
८९८.
इसे देखना भी नहीं था जो, तो जलायी थी ये शमा ही क्यों
मेरे दिल को भा गयी इसकी लौ, तो बता, ये किसका क़सूर है
८९९.
अदाओं की तेरी जादूगरी जानी नहीं जाती
नहीं जाती है, मेरे दिल की हैरानी नहीं जाती
९००.
ये माना, तू ही पर्दे से इशारे मुझको करता है
बिना देखे मगर दिल की परेशानी नहीं जाती
९०१.
अगर है प्यार दिल में तो कभी सूरत भी दिखला दे
तेरे कूचे की मुझसे ख़ाक अब छानी नहीं जाती
९०२.
यों तो कहाँ नसीब थे दर्शन भी आपके !
कहने को कुछ ग़ज़ल के बहाने चले हैं हम
९०३.
आहट तो उनकी आयी पर आँखें हुईं न चार
रातें हमारी कट गयीं ऐसे ही हाल में
९०४.
तेरी खुशबू से है तर बाग़ का पत्ता-पत्ता
क्यों न फिर हमको हरेक फूल पे प्यार आ जाये !
९०५.
सब उसीका प्रसाद जीवन में
विष भी आया है तो ग्रहण कर लो
९०६.
जो देखिए तो वही वह दिखाई देता है
जो सोचिए तो उलझता है जाल, है कि नहीं
९०७.
ज्योति उसकी है दूर अंबर में
क्षुद्र अणु में समा रहा है कोई
९०८.
प्यार ने झट उन्हें पा लिया
साधना हाथ मलती रही
९०९.
बनी तो तुमसे, किसी और से बने न बने
तुम्हारा है जो, किसी और का हुआ, न हुआ
९१०.
कोई था जब नहीं था कोई
हमने मुड़कर पुकारा नहीं
९११.
कोई हर साँस में आवाज देता
‘यहीं हूँ मैं’, ‘यहीं हूँ मैं’, ‘यहीं हूँ’
९१२.
हो जाय बेसुरी मेरी साँसों की बाँसुरी
इस ज़िंदगी को दर्द भी इतना न दीजिए
९१३.
भेद तो यह कभी खुलता कि दूसरा है कौन
ज़िंदगी ने कभी घूँघट को उतारा ही नहीं
९१४.
हमें मिटा तो रहे हो, मगर, रहे यह याद
इन्हीं लकीरों की हद में तुम्हारा प्यार भी है
९१५.
नाव इस तरह भँवर के न लगाती फेरे
दिल में माँझी के अगर प्यार भी थोड़ा होता
९१६.
हमको तो डर ही क्या है, उन्हींको हँसेंगे लोग
यह ज़िंदगी का साज़ कहीं बेसुरा न हो
९१७.
यों तो हर राह के पत्थर पे सर को मार लिया
नाम तेरा ही, मगर, हमने बारबार लिया
९१८.
जब किसी और ने मुड़कर भी न देखा इस ओर
हमने धीरे-से तुझे दिल में तब पुकार लिया
९१९.
हमने जिस ओर भी रक्खे थे बेसुधी में क़दम
तूने उस ओर ही मंज़िल का रुख सुधार लिया
९२०.
जो सर फोड़ना ही रहा पत्थरों से
ये फूलों के दिल क्यों गढ़े जा रहे हैं ?
९२१.
है तो दुनिया बड़ी हसीन, मगर
यह किसी दिलजले का काम भी है
९२२.
थे आप और आपकी दुनिया भी थी, मगर
होता नहीं जो मैं, ये तमाशा नहीं होता
९२३.
गीत, ग़ज़लें या रुबाई, कुछ कहो
उनसे मिलने का बहाना चाहिए
९२४.
निशान आपके क़दमों के मिल न पाते हों
निशान सर की रगड़ से बना रहा हूँ मैं
९२५.
नये सिरे से सजायेंगे ज़िंदगी को आज
फिर अपने पास बुला लो, बहुत उदास हूँ मैं
९२६. .
क़सूर है मेरे देखने का कि है तेरा आईना ही झूठा
कभी जो तू था तो मैं नहीं था, अभी जो मैं हूँ तो तू नहीं है
९२७.
हम खोज में उनकी रहते हैं, वे हमसे किनारा करते हैं
फूलों में हँसा करते हैं कभी पत्तों में इशारा करते हैं
९२८.
हमने माना कि तुम्हारे सिवा नहीं है कोई
फिर ये प्याला, ये शराब और ये महफिल क्या है !
९२९.
भले ही दो घड़ी के वास्ते, प्याला मिला हमको
किसीने भूल से पर दे दिया हो, हो नहीं सकता
९३०.
हमने माना कि पास हो हरदम
क्यों झलक उम्र भर नहीं मिलती
९३१.
देख लें प्यार से मुड़कर वे भी
आपने दिल से पुकारा तो हो
९३२.
कुछ तो मतलब भी समझाइए
खत्म होने को आयी किताब
९३३.
मुझको नस-नस के चटकने का हो रहा है गुमान
हुक्म तेरा है कि दम भर कहीं आराम न लूँ
९३४.
कोई सूरत हो, या हो वीरानी
दिल किसी बात पर अमल तो करे
९३५.
भले ही चाँद-सितारों में ढूँढ़ हारी नज़र
कभी तो आयेगी सूरत मुझे तुम्हारी, नज़र
९३६.
क़सूर कुछ तेरे हाथों का भी तो है, फनकार !
करें भी क्या जो यह तस्वीर दिल को भा ही गयी !
९३७.
दो न मंज़िल का पता हमको, मगर यह तो कहो
क्या न तुमको पास आकर मुस्कुराना चाहिए !
९३८.
जो भी कहिए, यही लगता है, कुछ भी कह न सके
और चुप भी न रहा जाय और क्या कहिए !
९३९.
हमको कभी दर्शन तो मिले
वे भी, सुना, रहते हैं यहीं
९४०.
हमने देखी न उनकी झलक आज तक
और हरदम मुलाक़ात होती रही
९४१.
सुबह जो एक भी मिलती है ज़िंदगी की हमें
तमाम उम्र की इस बंदगी से भारी है
९४२.
क़र्ज़ साँसों का तो दिया उसने
पाई-पाई हिसाब की ले ली
९४३.
टिका है दम ये किस उम्मीद पे, पूछो उनसे
यहाँ, जो कहते हैं, ‘दम के सिवा कुछ और नहीं’
९४४.
वे तड़पने का खेल देखा करें
ज़िंदगी हमको दी इसीके लिए
९४५.
हम डाँड़ चलाते हैं, तुम पार लगा देना
यह काम हमारा था, वह काम तुम्हारा है
९४६.
यों तो, दुनिया में कहीं था न पता तेरा, मगर
हमने कुछ प्यार के मारों में तुझको देख लिया
९४७.
हमें वो आँख दो, पर्दे के पार देख सकें
जो सामने से यह पर्दा हटा नहीं सकते
९४८.
हम पलटकर न कभी देखते दुनिया की तरफ
आपने बीच का पर्दा तो उठाया होता
९४९.
ये बाजी कोई और ही खेलता है
महज चाल हमसे चलायी गयी है
९५०.
डरते जो आँधियों से वे माँझी थे और ही
लिपटी किसीकी बाँह मेरे साथ रही है