har moti me sagar lahre

अब तुम बुरा कहो या भला
खोटा सिक्का भी हो जीवन, फिर भी खूब चला

पता नहीं कि काल में कब तक ठहरे काव्य-कला
अब मैंने तो आँधी में यह दीपक दिया जला

हुए बहुत, मैं ही न एक इस जग में हूँ पहला
कितनों का कटु वर्तमान भावी यश में बदला

यश-अभुक्त भी कार्य-मुक्त जो पूर्णकाम निकला
द्विगुणित हो द्युति, उसकी जब भी फिर से जाय ढला

२९ जून २०१५