har moti me sagar lahre

कागज़ पर की एक लकीर
जिसे रक्त से खींचा मैंने निज मर्मस्थल चीर

बाँध न सकती इसे रावणी लोहे की जंजीर
कर न सकें बंदी ऊँचे पाषाणों के प्राचीर

कवियों में रसमूर्ति, युद्ध में वीरों से भी वीर
गुणियों में गुणमय, मुनियों के सुर में गुरु, गंभीर

वरे लोकरुचि या न वरे, यह यश को नहीं अधीर
व्यर्थ बनें इस पर अन्याय, उपेक्षाओं के तीर

जिन्हें भाव की परख, गयी हो रुला प्रेम की पीर
वे इसमें नित सुनें भारती के पग की मंजीर

कागज़ पर की एक लकीर
जिसे रक्त से खींचा मैंने निज मर्मस्थल चीर