har moti me sagar lahre

किस सुर में मैं गाऊँ !
तीन-तीन देवियाँ खड़ी हैं, किस पर फूल चढाऊँ !

अंग्रेजी का रूप सुनहला
उर्दू का नहले पर दहला
स्नेह मिला पर जिससे पहला
कैसे उसे भुलाऊँ !

उधर बायरन फिर-फिर टेरे
ग़ालिब इधर खड़े पथ घेरे
किन्तु पर्यटनस्थल जो मेरे
कुटी वहाँ क्यों छाऊँ !

घड़ी-दो घड़ी टहल-घूमकर
लौट चुका हूँ मैं अपने घर
क्यों न, जहाँ की सुबह, वहीं पर
दिन का शेष बिताऊँ !

तीन-तीन देवियाँ खड़ी हैं, किस पर फूल चढाऊँ !