har moti me sagar lahre
गहरी निद्रा में नित्य सोकर जहाँ जाते लोग
चिर-निद्रा में भी तो वहीं उन्हें जाना है
भय क्या जब अंतिम क्षण की भी स्थिति नित्य-सी हो
फिरें बस एक से जाकर एक से न आना है
चिर-निद्रा से भी शेष में पर भू पर लौटना है
कर्म-फल है पाना यहीं, यद्यपि नया बाना है
परिवेश-मोह त्याग, जीते-जी भी छूटते जो
मृत्यु से क्यों डरे जिसने निज को अमर माना है