har moti me sagar lahre
मत कुछ लिखें, मत कुछ कहें
क्या, जो मेरी बारी में लेखाधिकारी चुप ही रहें !
मत मिले स्थान कवियों की सूची में भी मुझे
मैं तो रहूँगा हृदय में जन–जन के
अधरों में गुंजन बनके
साध यही, शब्द मेरे कागज से उठ –उठकर
नयनों से अश्रु बन बहें
मौन गिरिघाटियों में मणियाँ चुनता हुआ
क्या, जो वणिको को मैं दिख नहीं पाया !
नहीं भारती ने तो भुलाया
जिन पर करे वह पुष्प–वृष्टि, वे काँटों की चुभन
क्यों न सहज भाव से सहें !
मत कुछ लिखें, मत कुछ कहें
क्या, जो मेरी बारी में लेखाधिकारी चुप ही रहें !