jyon ki tyon dhar deeni chadariya

भाग्य से, माना, कुछ न चली
मिट न सके कटु अंक भाल के, होनी नहीं टली

क्षमा, दया की लगा दुहाई
विफल हुई जो व्यथा सुनायी
यदपि न भक्ति काम कुछ आयी

रुका न काल बली

फिर भी जो अब तक चल पाया
क्या कम प्रभु ने प्रेम दिखाया!
है उनकी ही मंगल-छाया

रहती ज्योति जली

कैसा भी तम हो, जग-जन-हित
मिलती सूक्ष्म झलक उनकी नित
मैंने ही भ्रमवश, शंकित-चित्

आँख बंद कर ली

भाग्य से, माना, कुछ न चली
मिट न सके कटु अंक भाल के, होनी नहीं टली