jyon ki tyon dhar deeni chadariya

वार्द्धक्य

आज यह कैसा मनस्ताप हुआ!
आइना देखना भी पाप हुआ
सध न पाता था जो विराग कभी
देख अपने को, अपनेआप हुआ

आयु के शेष की इन घड़ियों में
कैद हूँ काल की हथकड़ियों में
अब मिले प्यार की खुशबू कैसे
दिल की सूखी हुई पंखड़ियों में!

कट रही आयु तो सुख-भोगों में
क्या बुढ़ापा कटेगा रोगों में!
देखकर जिनको तरस आता था
अब दिखूँगा मैं उन्हीं लोगों में!