kagaz ki naao

नाव काग़ज़ की भी है मेरी
पर, प्रभु! तेरे कृपा-कवच से सदा रहेगी घेरी

डूबे नहीं, सिन्धु सिर मारे
झंझा इसे हिलाकर हारे
निश्चय ही तू पार उतारे

थके लगा जब फेरी

गुण-ग्राहक, पारखी, सयाने
भर लें घट, जिनका मन माने
घटे न, जग को चली चखाने

जो रस की निधि तेरी

कागज़ की नौका पर चढ़कर
माना, डूब गये अगणित नर
पर हों अमर, जिन्हें तू ले वर

छुये न काल अहेरी

नाव काग़ज़ की भी है मेरी
पर, प्रभु! तेरे कृपा-कवच से सदा रहेगी घेरी