kagaz ki naao

नाथ! अच्छी चाकरी बतायी!
चाकर कहलाने की धुन में, रातों नींद गँवायी

ओ मेरे निष्ठुर-उर स्वामी!
कैसी है यह कठिन गुलामी!
जब से तेरी चौखट थामी

रुकी न कलम-घिसाई

सच है, बीच-बीच में आकर
तूने कृपा-दृष्टि की मुझ पर
पर न चैन मिल सका घड़ी भर

ऐसी लगन लगायी

बस संतोष यही अब मन में
किया न हो कुछ भी जीवन में
ढील न की आज्ञापालन में

आयु न व्यर्थ बितायी

नाथ! अच्छी चाकरी बतायी!
चाकर कहलाने की धुन में, रातों नींद गँवायी