kagaz ki naao

न छोड़ूँ पकड़ लिये जो चरण
क्षमा ही अब है अंतिम शरण

कोटि जन्म में भी न उतर पाये पापों का भार
न्याय-नीति से तो, प्रभु! मेरा कभी न हो उद्धार

मेरा अंतिम दाँव यही जो कर ले शोक-हरण

पहले भी तो तुमने करके क्षमा अमित अपराध
दी नरदेह मुझे यह सुन्दर, प्रेम-भक्ति की साध

छूटा पर न स्वभाव, पाप को फिर कर लिया वरण

जहाँ तुम्हारा वास वहाँ, माना जड़ शब्द न जाते!
पश्चात्ताप भरे आँसू भी क्या न चरण छू पाते!

अब अंतिम आधार उन्हींका, सम्मुख खड़ा मरण

न छोड़ूँ पकड़ लिये जो चरण
क्षमा ही अब है अंतिम शरण