kagaz ki naao

मैंने जब-जब ठोकर खायी
मुझको तो तेरी अहैतुकी कृपा बचाती आयी

यद्यपि पूजन, भजन न जाने
जग के भोगों में सुख माने
फिर भी, प्रभु! तेरी करुणा ने

मुझपर प्रीति दिखायी

समझ न पाता मैं, मन मेरा
है जो सदा काम से घेरा
कैसे स्नेह पा सका तेरा!

भग्न तरी तिर पायी!

भूला मैं, पर सृष्टि-विधाता
पल तू इस अणु को न भुलाता
सोच, लाज से सिर झुक जाता

टिक पाती न ढिठाई

मैंने जब-जब ठोकर खायी
मुझको तो तेरी अहैतुकी कृपा बचाती आयी