kagaz ki naao
व्यर्थ भी हो सब लिखा-लिखाया
पर इस लेखन में ही तो, प्रभु! तेरा दर्शन पाया
महामोह था घेरा डाले
पर जिनसे मन तुझको पा ले
मंत्र प्रेम ने ढूँढ़ निकाले
शब्द-सेतु रच लाया
मेरा मन तो चिर चंचल था
जिसमें त्याग न तप का बल था
भक्ति-सुरों का स्रोत विमल था
बता, कहाँ से आया
शब्द न यदि गुण गाते तेरा
पाता लाँघ काल का घेरा!
जीवन नश्वर भी हो मेरा
शाश्वत है जो गाया
व्यर्थ भी हो सब लिखा-लिखाया
पर इस लेखन में ही तो, प्रभु! तेरा दर्शन पाया