kagaz ki naao
क्या परिचय दूँ अपना!
यही समझ लेना, सोकर देखा था कोई सपना
पथिक घड़ी भर को आया जो
मन में बसा न लेना उसको
कितना भी यह मिलन सुखद हो
स्मृति में क्यों हो तपना!
छेड़े भी हों राग मनोहर
श्रेय न मेरा इसमें तिल भर
जिसने वंशी में फूँके स्वर
नाम उसीका जपना
क्या परिचय दूँ अपना!
यही समझ लेना, सोकर देखा था कोई सपना