kavita
अयि, वन की स्वामिनी!
पहन कुसुम-आभूषण अभिनव
यौवन-वसंत-मधुरासव
अधरों में मुस्काती नीरव
नव वय की कामिनी
मुख पर झीना अंचल डाले
उड़ती कुंचित लटें. सँभाले
अर्ध-नग्न खेतों में, बाले!
फिरती गज – गामिनी
कटि-तट क्षीण, उरोज मधुर छवि
जड़ित-दिगंचल तारक-शशि-रवि
अपलक नयन निहार थका कवि
तुम्हें दिवस – यामिनी
अयि, वन की स्वामिनी!
1947