कविता_Kavita
- अयि, वन की स्वामिनी !
- आज कुसुम कुम्हलाये
- आज तन-मन खो रहे हैं
- आज रे, आधार क्या !
- उन मूक प्राणों की कथा
- किरण
- कैसे तब बँधेगी आस
- कोयल ने गाया
- कौन?
- कौन तुम वन में विचरती ?
- गीतों की विदाई
- तेरी यह अनंत अभिलाषा
- दूर गगन में टूटा तारा
- दूर गगन में तारा टूटा
- नभ में तारे भी न रहे
- नवजीवन भर दो
- निर्झर से
- परिचय
- बलि का फूल
- बस एक बार मुस्का दो ना
- भावना
- मरघट का फूल
- मरण
- माँझी से
- मेरे नयन नीर भरे
- मेरे विकल तन-मन प्राण
- मैं कवि के भावों की रानी
- मैं तुम्हारे ही गले का हार
- मैं तुम्हें देखता ही रहता
- मैं भावों का राजकुमार
- याद
- यों ही दिन बीते जाते हैं
- लघु-लघु प्रदीप, लघु-लघु प्रकाश
- वंदी आज तन-मन प्राण
- वर्षा
- वाणी का वर दो
- विदा
- वे दिन एक कहानी
- श्मशान
बहुत-सी रचनायेँ, जो कविता की कोटि में आसानी से अपने दल खोल चुकी हैं, खुशबू से उन्मद, स्निग्ध कर देती हैं।
महाकवि निराला
भाव और भाषा का इतना सुन्दर सामन्जस्य कदाचित ही हिन्दी के किसी कवि ने इस अवस्था में ऐसा किया हो.
श्री बेढब बनारसी
लगता है, विधाता ने मेरे हृदय का ही एक टुकड़ा तुम्हारे हृदय में रख दिया है। मैंने ’कविता’ को उन संग्रहों में रख दिया है जिन्हें मैं फिर-फिर देखना चाहता हूँ।
हरिवंश राय बच्चन