kavita

आज कुसुम कुम्हलाये
कल ही तो मैंने इनसे थे अपने केश सजाये

मेरे फूल न तुम कुम्हलाना
प्रिय! पतझर में भी मुस्काना
खिलना, बस खिलते ही जाना

जग से आँख चुराये

देख न सके तुम्हें मधुबाला
पी न सको अधरों की हाला
सौरभ बन पथ में उड़ जाना

कोई जान न पाये

पी चम्पक-कपोल-मधु जी भर
झूम अलक में, पलक चूमकर
बन जाना अधरों में मर्मर,

जब प्रेयसी लजाये

छू रज-कण प्रिय-पथ का प्यारा
चरणों का बन जाय सहारा
युग-युग तक संगीत तुम्हारा,

मिलन रागिनी गाये

आज कुसुम कुम्हलाये
कल ही तो मैंने इनसे थे अपने केश सजाये

1940