kavita

प्ररिचय

क्रंदन बनकर ही गान मिला है मुझको
जलता जाऊँ, वरदान मिला है मुझको
मैं ज्यों-ज्यों पीता, तृषा उमड़ती जाती
निष्फल कवि का यह मान मिला है मुझको

जग की आशा से मुझको हुई निराशा
बन गयी विफलता मेरी हर अभिलाषा
मैं गीत सुनाता जीवन के सुख-दुख के
है ज्ञात न मुझको जीवन की परिभाषा

अरमानों का संसार लिये आया हूँ
प्राणों में एक पुकार लिये आया हूँ
आहों में बिखर पड़ी जीवन की गाथा
साँसों में हाहाकार लिये आया हूँ

ले यौवन का अभिशाप जला करता हूँ.
अपनी ज्वाला में आप जला करता हूँ
युग हुए, किया था प्यार कभी जीबन में
अब तिल-तिल कर चुपचाप जला करता हूँ

बतला दूँ, जीवन में मैंने क्‍या देखा!
असफलता है अभिलाषाओं का लेखा
हम मिटें, मिटे जग, जीवन भी मिट जाये
पर अमिट रहेगी यहाँ भाग्य की रेखा

1940