kavita

निर्झर से

ज्योत्स्ना-पुलिकित विजन-मलय तंद्रालस
अमृत-भरी रजनी, कंपित-उर, बरबस
दुर्गम गिरि-घाटी, वनांत से हँस-हँस-कर उतरो

किसलय-वलयित सेज चांदनी को रच
वल्‍लरियों में गूँथ स्वर्ण-छाया-कच
पवन-अंक से उतर भूमि पर अविकच चरण धरो

कंकड़ से छिल जायँ न मृदुल उँगलियाँ
बिछे राह में फूल, दूब की कलियाँ
दूर-दूर छवि-चित्रित कुंज-अवलियाँ हैं, विहरो

भँवर-ऊर्मिका मढ़ी, रात में जगमग
भाल-बिंदु नव इंदु, कंठ तारा-नग
प्रिय-छाया-पग परस गले से लग-लग नृत्य करो

1941