kavita

तेरी यह अनंत अभिलाषा

किस महान सुख की कर आशा
बैठा है चुपचाप ठगा-सा
सम्मुख मधु का सिंधु उमड़ता, तू प्यासा का प्यासा!
जिसे नहीं सपने छू पाते
जहाँ कल्पना-विहग न जाते
उसे बाँध लाने की तेरी आशा क्‍यों न दुराशा!
ढूँढ़ रहा जलकण में सागर
प्रेम! और वह भी अविनश्वर!
छोटे-से जीवन से क्यों इतनी विराट प्रत्याशा!
तेरी यह अनंत अभिलाषा

1939