kavita
दूर गगन में टूटा तारा
एक-एक प्रत्ति रजनी में जब
टूट जायँगे ये सबके सब
क्या गिन-गिनकर रात बितायेगा तब वह विरही बेचारा!
नहीं एक भी पंछी बोला
नहीं एक भी पत्ता डोला
जीवन भर चुप रह, चुपके से जीवन से कर गया किनारा
सुखद स्वर्ग की परिभाषा थी
जहाँ अमरता की आशा थी
आज समझ पाया, नश्वर है, हाय! वहाँ भी जीवन-धारा
दूर गगन में टूटा तारा
1940