kuchh aur gulab
कभी बेसुधी में रुके नहीं, कभी भीड़ देखके डर गये
तेरा प्यार दिल में लिये भी हम, तेरे सामने से गुज़र गये
तू भले ही रात न था कहीं, वो वहम भी था तो बुरा नहीं
कि कभी हमारे क़रीब ही, तेरे पाँव आके ठहर गये
कभी, हमसफ़र ! यहाँ हम न हों, तेरी चितवनें भी ये नम न हों
ये अदायें प्यार की कम न हों, कभी हम भी जिनमें सँवर गये
हमें दोस्तों ने भुला दिया, हमें वक़्त ने भी दग़ा दिया
उन्हें ज़िंदगी ने मिटा दिया जो निशान दिल में उभर गये
वे भले ही हँसके भी मिल रहे, न भरे वे प्यार के दिल रहे
जो कभी थे होंठ पे खिल रहे, वे गुलाब आज किधर गये !