kuchh aur gulab

कोई ऊँची अटारी पे बैठा रहा, हाय ! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं !
झुकके आँचल में जिसने समेटा हमें, ज्योंही तूफ़ान ने सर उभारा नहीं

उनसे उम्मीद क्या, बाद मरने के वे, दो क़दम आके काँधा भी देंगे कभी
जो अभी डूबता देखकर भी हमें, एक तिनके का देते सहारा नहीं

वार हँस-हँसके दुनिया के झेला किये, हमने दुश्मन न समझा किसी को कभी
जिनको अपना समझते थे दिल में मगर, बेरुख़ी आज उनकी गवारा नहीं

हो न मंज़िल का कोई पता भी तो क्या ! छोड़कर कारवाँ बढ़ गया भी तो क्या !
राह वीरान, दिन ढल रहा भी तो क्या ! चलनेवाला अभी दिल में हारा नहीं

तू खिला इस तरह जो रहेगा, गुलाब ! प्यार भी उनकी आँखों में आ जायगा
तेरी ख़ुशबू तो उन तक पहुँच ही गयी, रुकके जूड़ा भले ही सँवारा नहीं