kuchh aur gulab

चाह अब भी हो उसे मेरी, ज़रूरी तो नहीं
उम्र भर याद हो बचपन की, ज़रूरी तो नहीं

प्यार करने का उसे हक़ तो सभी का है, मगर
प्यार बदले में करे वह भी, ज़रूरी तो नहीं

हर अदा उसकी क़यामत बनी है मेरे लिये
जानता भी हो इसे कोई, ज़रूरी तो नहीं

वक़्त मिलता नहीं मिलने का तुम्हें, सच है, मगर
बस यही एक हो मज़बूरी, ज़रूरी तो नहीं

कहा गुलाब से मिलने को तो हँसकर बोले–
‘आख़िरी रात हो यह उसकी, ज़रूरी तो नहीं ‘